मनमोहन सिंह Vs पीएम मोदी: GDP, विदेसी कर्ज और मुद्रा भंडार में कौन बेहतर

नई दिल्ली: भारत के आर्थिक विकास और उसके विभिन्न पहलुओं का मूल्यांकन करते समय दो प्रधानमंत्रियों, डॉ. मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी, की सरकारों का तुलनात्मक अध्ययन महत्वपूर्ण हो जाता है। यह तुलना विशेष रूप से जीडीपी विकास दर, मुद्रास्फीति, वित्तीय घाटा, चालू खाता घाटा, विदेशी कर्ज और मुद्रा भंडार जैसे प्रमुख आर्थिक संकेतकों पर आधारित है। आइए जानते हैं कि 2004-2014 के बीच मनमोहन सरकार और 2014-2022 तक की मोदी सरकार के दौरान इन संकेतकों का प्रदर्शन कैसा रहा।

जीडीपी विकास दर

मनमोहन सिंह की सरकार (2004-2014) ने औसतन 6.8% की जीडीपी विकास दर दर्ज की, जो उस समय के वैश्विक आर्थिक परिप्रेक्ष्य में एक प्रभावशाली आंकड़ा था। हालांकि, वैश्विक मंदी (2008-2009) के दौरान भारत ने अपनी विकास दर को बरकरार रखा, लेकिन इसके बावजूद यह सरकार कुछ मुद्दों का सामना कर रही थी, जैसे सरकारी खर्च और बढ़ते करों का दबाव।

वहीं, मोदी सरकार (2014-2022) की शुरुआत के दौरान जीडीपी विकास दर कुछ कम रही, जो औसतन 5.25% रही। हालांकि, कोविड महामारी के कारण 2020 में अर्थव्यवस्था पर गंभीर असर पड़ा, लेकिन महामारी के बाद मोदी सरकार ने आर्थिक सुधारों और प्रोत्साहनों के जरिए विकास दर को पुनः प्रोत्साहित किया। यदि कोविड के प्रभाव को न गिना जाए तो औसत विकास दर 6.84% तक पहुंच गई, जो कि मनमोहन सरकार के समान है।

मुद्रास्फीति में अंतर

मनमोहन सरकार के दौरान औसतन मुद्रास्फीति दर 7.5% रही। इसमें तेल और खाद्य वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह उच्च मुद्रास्फीति अर्थव्यवस्था पर दबाव डालती थी, जिससे जनता को भी मुश्किलें आईं।

इसके विपरीत, मोदी सरकार ने मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखने की कोशिश की और इसे औसतन 5% तक बनाए रखा। केंद्रीय बैंक के उपायों और सरकार के आर्थिक सुधारों के चलते, मुद्रास्फीति को एक काबू में रखा गया, जो आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा देता है।

वित्तीय घाटा और चालू खाता घाटा

मनमोहन सरकार के दौरान वित्तीय घाटा औसतन 4.3% और चालू खाता घाटा (CAD) 2.4% रहा। 2012-2013 में चालू खाता घाटा 4.8% तक बढ़ गया था, जो एक चिंताजनक स्थिति थी। मोदी सरकार ने वित्तीय घाटे को नियंत्रित करते हुए इसे औसतन 3.7% तक बनाए रखा और चालू खाता घाटा 1.6% तक स्थिर किया। यह मोदी सरकार की सतर्कता और सुधारों का परिणाम था, जिसने भारत की आर्थिक स्थिति को स्थिर बनाए रखा।

दोनों सरकार के दौरान विदेशी कर्ज

मनमोहन सरकार के अंत में, यानी मार्च 2014 में, भारत का विदेशी कर्ज 440.6 बिलियन डॉलर था। वहीं, मोदी सरकार के तहत यह कर्ज मार्च 2023 तक बढ़कर 613 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया। हालांकि, विदेशी कर्ज में वृद्धि हुई है, लेकिन यह भी ध्यान देने योग्य है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार में भी वृद्धि हुई है, जिससे कर्ज की वृद्धि को संभालने की क्षमता बढ़ी।

दोनों सरकार के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार

मनमोहन सरकार के अंत में 2014 में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 304.2 बिलियन डॉलर था। इसके मुकाबले मोदी सरकार के तहत 2023 में यह बढ़कर 595.98 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया। विदेशी मुद्रा भंडार में इस वृद्धि ने भारत की विदेशी भुगतान क्षमता को मजबूत किया है, जो किसी भी बाहरी आर्थिक संकट से निपटने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।

दोनों सरकार ने व्यापार करने की सरलता

मनमोहन सरकार के दौरान भारत की व्यापार करने की सुगमता रैंक 132 से घटकर 134 हो गई थी। इसके कारण व्यापार करने में कठिनाइयां बढ़ी थीं। लेकिन मोदी सरकार ने व्यापार सुधारों और डिजिटलीकरण की दिशा में कई पहलें की, जिसके परिणामस्वरूप 2022 तक भारत की रैंक 63 हो गई। यह एक उल्लेखनीय सुधार था, जिसने भारत को निवेशकों और व्यापारियों के लिए आकर्षक बना दिया।

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