चकबंदी आयुक्त डॉ. हृषिकेश भास्कर याशोद ने बताया कि बस्ती, संतकबीरनगर, देवरिया, कानपुर नगर, प्रयागराज, उन्नाव, मऊ, आजमगढ़, लखीमपुर खीरी, कन्नौज, प्रतापगढ़, फतेहपुर, बरेली, मीरजापुर, सीतापुर, सुलतानपुर और सोनभद्र के इन 25 गांवों में वर्षों से लंबित चकबंदी कार्य अब पूरी तरह से संपन्न कराए गए हैं। जिलों के डीएम द्वारा भेजे गए प्रस्तावों पर चकबंदी प्रक्रिया को पूर्ण करने की मंजूरी दी गई।
आजमगढ़ के उदाहरण
आजमगढ़ जिले के गांव उबारपुर लखमीपुर में चकबंदी प्रक्रिया 30 दिसंबर 1967 को गजट की गई थी, लेकिन अभिलेख गायब होने के कारण कार्य लंबित रह गया था। अभिलेखों की खोज न होने पर एफआइआर भी दर्ज कराई गई थी। कुल मिलाकर यह प्रक्रिया लगभग 58 वर्षों से रुकी हुई थी।
गांव गहजी में भी चकबंदी प्रक्रिया 8 मई 1972 को गजट की गई थी, लेकिन ग्रामीणों के बीच विवाद और सामंजस्य की कमी के कारण यह कार्य 53 वर्षों तक अधूरा रहा। यहां तक कि एक पक्ष ने 2016 में इलाहाबाद हाई कोर्ट में वाद दाखिल किया था। स्थगन समाप्त होने के बाद भी 2019 तक निस्तारण नहीं होने के कारण प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पाई।
अधिकारियों की पहल और समाधान
चकबंदी आयुक्त ने इन दोनों गांवों की गहन समीक्षा की और डीएम तथा चकबंदी विभाग के अधिकारियों को कड़े निर्देश दिए। अधिकारियों ने ग्रामीणों के बीच सामंजस्य स्थापित कर नए अभिलेख तैयार किए और चकबंदी प्रक्रिया को पूर्ण कराई।
इस चकबंदी का प्रशासनिक महत्व
बता दें की सरकार के इस कदम से न केवल वर्षों से लंबित चकबंदी कार्य पूरे हुए, बल्कि ग्रामीणों को अपनी जमीन के अधिकारों का वैध दस्तावेज भी प्राप्त हुआ। इससे जमीन विवाद और कानूनी जटिलताओं को कम करने में मदद मिलेगी।

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