यह घोटाला टोल वसूली के सिस्टम में गहरी पैठ बना चुका था और लंबे समय से एनएचएआई के लिए एक बड़ा आर्थिक नुकसान बना हुआ था। एसटीएफ की जांच और गिरफ्तारी से इस धोखाधड़ी के बड़े पैमाने पर उजागर होने का रास्ता साफ हुआ है। यह नेटवर्क 14 राज्यों में फैला हुआ था, जिसमें 42 टोल प्लाजा शामिल थे और यह घोटाला पिछले दो सालों से चल रहा था।
पुलिस ने जांच में पाया कि घोटाले के कारण मिर्जापुर स्थित अतरौला टोल प्लाजा को हर दिन करीब 45,000 रुपये का नुकसान हो रहा था। आरोपियों ने एक अवैध सॉफ़्टवेयर का इस्तेमाल किया, जिसके माध्यम से टोल की वसूली को फर्जी तरीके से निजी खातों में भेज दिया जाता था।
यह सॉफ़्टवेयर खासकर उन वाहनों से अधिक टोल वसूलने के लिए बनाया गया था, जिनमें फास्टैग नहीं होता था या जिनका बैलेंस कम होता था। इन वाहनों से आमतौर पर दोगुना टोल लिया जाता है। आलोक कुमार सिंह नामक एक प्रोग्रामर और टोल प्लाजा के पूर्व कर्मचारी ने यह अवैध सॉफ़्टवेयर तैयार किया था, जो एनएचएआई के आधिकारिक सॉफ़्टवेयर के साथ काम करता था।
इस सॉफ़्टवेयर द्वारा नकली रसीदें तैयार की जाती थीं, जो एनएचएआई की असली रसीदों से मिलती-जुलती थीं, जिससे घोटाले का पता लगाना बेहद कठिन हो गया था। सिंह ने टोल प्लाजा प्रबंधकों और आईटी कर्मचारियों के साथ मिलकर यह सॉफ़्टवेयर इंस्टॉल किया, जिससे ये धोखाधड़ी आसानी से चलती रही। एसटीएफ ने यह भी खुलासा किया कि यह धोखाधड़ी केवल उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं थी, बल्कि इस नेटवर्क का दायरा मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, झारखंड, पंजाब, असम, बंगाल, जम्मू, ओडिशा, हिमाचल प्रदेश और तेलंगाना के 42 टोल प्लाजा तक फैला हुआ था।
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