न्यूज डेस्क: कोविड-19 की अगर बात करें तो यह कोरोना फ़ैमिली का नया वायरस है जो इंसान में साँस से जुड़ी तकलीफ पैदा करता है.
इस वायरस से संबंधित जितनी भी मेडिकल रिसर्च हाल में हुई हैं, उनमें से किसी में भी इस विषय पर शोध नहीं हुआ है कि करेंसी नोट और सिक्कों के ज़रिए यह वायरस कैसे फैलता है. वैज्ञानिक समझ यह कहती है कि 'कोरोना वायरस ड्रॉपलेट यानी सूक्ष्म बूंदों के रूप में ही मनुष्य की नाक या मुँह के ज़रिए शरीर में जा सकता है.'
यानी कोई संक्रमित बिल, नोट या सिक्का हाथ में लेने के बाद अगर हाथों को ना धोए, तो यह ख़तरनाक़ साबित हो सकता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इस संदर्भ में यही कहा है. पर क्या कागज़ के नोट और सिक्के संक्रमित हो सकते हैं?
चीन और दक्षिण कोरिया में जब कागज़ के नोटों और सिक्कों की सफ़ाई का काम शुरू हुआ तो यही सवाल उठाया गया था. लेकिन इसके जवाब में साल 2003 में फैली SARS महामारी के समय हुए एक शोध का हवाला दिया गया. अमरीका में हुई इस स्टडी में कहा गया था कि 'SARS कोरोना वायरस कागज़ को 72 घंटे तक और कपड़े को 96 घंटे तक संक्रमित रख सकता है.'
और हालिया अध्ययनों के बाद वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि 'SARS कोरोना वायरस और कोविड-19 में काफ़ी संरचनात्मक समानताएं हैं.' हालांकि कोविड-19 की मृत्यु दर अब तक SARS कोरोना वायरस की तुलना में कम बताई जा रही है.
इन सभी बातों को ध्यान में रखें तो कागज़ के करेंसी नोट और सिक्के एक संक्रमित एजेंट का काम तो कर ही सकते हैं और कोरोना वायरस के फैलने में सहायक साबित हो सकते हैं. ऐसे चुनौतीपूर्ण समय में आरबीआई का डिजिटल भुगतान करने का सुझाव जनता के लिए एक बेहतर विकल्प है.
लेकिन जो लोग नकदी के इस्तेमाल से पूरी तरह बच नहीं सकते, उन्हें विश्व स्वास्थ्य संगठन के परामर्श को मानना चाहिए. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि 'अगर आप संक्रमित नकदी के संपर्क में आते भी हैं, तो उसे लेने या देने के बाद अपने हाथ धोकर आप समस्या को टाल सकते हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ज़ोर देकर कहा है कि 'जिन देशों में कोरोना वायरस संक्रमण फैला है, वहाँ के करेंसी नोट या सिक्के हाथ में लेने के बाद, अपने चेहरे, मुँह, नाक, कान या आँख को ना छुएं.'
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