बता दें की इस बार भारत ने पाँच परमाणु परीक्षण किए थे। यह परीक्षण भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा और रणनीतिक हितों के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण थे। इन परीक्षणों के बाद भारत ने न केवल अपनी सैन्य शक्ति को दिखाया, बल्कि वैश्विक स्तर पर यह संदेश भी दिया कि वह एक आत्मनिर्भर और शक्तिशाली राष्ट्र है।
भारत के परमाणु परीक्षणों के समय के अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव
भारत के इन परमाणु परीक्षणों के बाद वैश्विक स्तर पर प्रतिक्रिया मिश्रित थी। कुछ देशों ने इसका विरोध किया, जबकि कुछ ने इसका समर्थन भी किया। फ्रांस और रूस जैसे देशों ने भारत के परीक्षणों का समर्थन किया और भारत को अपनी रणनीतिक शक्ति को बनाए रखने का अधिकार बताया। इन देशों ने भारत के परमाणु परीक्षणों के बाद भी भारत के साथ कूटनीतिक और सैन्य सहयोग बढ़ाया।
फ्रांस का समर्थन
फ्रांस ने भारतीय परमाणु परीक्षणों के बाद भारत का समर्थन किया और अमेरिकी प्रतिबंधों को नजरअंदाज करते हुए भारत को हथियार बेचना शुरू किया। फ्रांस ने भारत के परमाणु कार्यक्रम को स्वीकार करते हुए उसके साथ सहयोग बढ़ाया, और भारत को तकनीकी, विज्ञान और सुरक्षा मामलों में सहायता दी।
रूस का समर्थन
रूस ने भी भारत के परमाणु परीक्षणों के बाद भारत के साथ अपने संबंधों को मजबूत किया। रूस ने हमेशा भारत को अपने रणनीतिक साझेदार के रूप में देखा और भारत के परमाणु परीक्षणों के बाद भी रूस ने भारत को अपने रक्षा और परमाणु मामलों में सहयोग देने का वचन दिया।
भारत का परमाणु नीति
भारत ने हमेशा अपनी परमाणु नीति को 'पहला इस्तेमाल नहीं' (No First Use) के सिद्धांत पर आधारित रखा है, जिसका मतलब है कि भारत कभी भी पहले परमाणु हथियार का इस्तेमाल नहीं करेगा। हालांकि, अगर भारत पर परमाणु हमला किया गया तो वह इस पर प्रतिक्रिया देगा। भारत की यह नीति उसे वैश्विक परमाणु शक्ति के रूप में अलग बनाती है, क्योंकि अधिकांश परमाणु शक्तियां पहले परमाणु हमले का विकल्प खुला रखती हैं।
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