यूपी में आउटसोर्स कर्मियों के लिए नई व्यवस्था होगी लागू

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार राज्य में कार्यरत छह लाख से अधिक आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए एक नई और सशक्त व्यवस्था लागू करने जा रही है। इसका उद्देश्य न केवल इन कर्मियों की सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करना है, बल्कि सेवा प्रक्रिया को भी पारदर्शी और जवाबदेह बनाना है। सरकार की पहल पर राज्य में ‘यूपी आउटसोर्स सेवा निगम’ के गठन की प्रक्रिया अंतिम चरण में है।

छह स्तरों पर होगा निगम का संचालन

निगम का प्रशासनिक ढांचा छह स्तरों पर कार्य करेगा, जिसकी सर्वोच्च इकाई बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स होगी। इसके अलावा सलाहकार समिति, निगम कार्यालय, शासन स्तर, मंडल एवं जिला स्तरीय वेरिफिकेशन कमिटियां गठित की जाएंगी। मुख्यालय में एमडी के पद पर सचिव स्तर के अधिकारी की तैनाती होगी, जबकि एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर के तीन पद प्रतिनियुक्ति से भरे जाएंगे। शेष पदों पर भर्ती आउटसोर्सिंग के माध्यम से की जाएगी।

बिना भुगतान ओवरटाइम कराने पर रोक

निगम के जरिए अब आउटसोर्स कर्मचारियों से तय समय से अधिक कार्य करवाने की स्थिति में बिना ओवरटाइम भुगतान के काम नहीं लिया जा सकेगा। इसके अलावा, कर्मचारियों की नौकरी को सुरक्षित रखने के लिए भी स्पष्ट मानक तय किए जा रहे हैं। अब तक एजेंसियों की मर्जी पर निर्भर इन कर्मचारियों के शोषण को रोकने के लिए यह व्यवस्था एक बड़ी राहत साबित होगी।

वेतन प्रक्रिया होगी पारदर्शी, 5 तारीख तक वेतन

निगम के मसौदे के अनुसार कर्मचारियों का कार्यदिवस हर महीने की 21 तारीख से अगले महीने की 20 तारीख तक माना जाएगा। इसके आधार पर वेतन निर्धारण की प्रक्रिया शुरू होगी और हर महीने की 5 तारीख तक कर्मचारियों के बैंक खातों में वेतन जमा कराया जाना अनिवार्य होगा। इसके साथ ही ईपीएफ और ईएसआई की धनराशि भी समय पर जमा कर निगम को सूचना देनी होगी।

बीमा और पेंशन जैसी योजनाएं भी लागू की जाएगी

निगम के जरिए आउटसोर्स कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएंगे। ईपीएफ योजना के तहत सेवानिवृत्ति पर ₹1000 से ₹7500 तक पेंशन, विधवा या माता-पिता को मृत्यु पर ₹1000 से ₹2900 तक मासिक पेंशन की सुविधा दी जाएगी। इसके साथ ही, बैंकों के सहयोग से कर्मियों का ₹30 लाख तक का ऐक्सिडेंटल डेथ या डिसेबिलिटी बीमा भी कराया जाएगा।

एजेंसियों की संख्या होगी सीमित, जवाबदेही होगी तय

वर्तमान में कार्यदायी संस्थाओं और एजेंसियों की अधिकता के कारण समन्वय में दिक्कत आती है। इसलिए अब निगम के जरिए इनकी संख्या सीमित करने का प्रस्ताव है। सूत्रों के मुताबिक, प्रदेश के 18 मंडलों में तीन एजेंसियों का चयन हो सकता है—हर एजेंसी को छह मंडलों की जिम्मेदारी दी जा सकती है। यदि यह संभव न हो, तो तीन मंडलों पर एक एजेंसी नियुक्त की जा सकती है।

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