शिक्षामित्रों की स्थिति: 2017 से इंतजार
शिक्षामित्रों का मामला कई वर्षों से लंबित है। अगस्त 2017 से शिक्षामित्र 10,000 रुपये मासिक मानदेय पर कार्य कर रहे हैं, लेकिन इनकी मेहनत के अनुरूप मानदेय में कोई वृद्धि नहीं हुई है। समय-समय पर शिक्षामित्रों ने अपनी मांगों को लेकर आंदोलन किए हैं, जिलों से लेकर प्रदेश स्तर तक धरना-प्रदर्शन भी किए, लेकिन सरकार ने अब तक इनकी मांगों पर विचार नहीं किया। यह स्थिति शिक्षामित्रों के लिए निराशाजनक रही है, खासकर तब जब वे शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
हाईकोर्ट का आदेश और सरकार की चुनौती
इलाहाबाद हाईकोर्ट का हालिया फैसला शिक्षामित्रों के लिए एक बड़ी जीत माना जा सकता है। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को शिक्षामित्रों का मानदेय बढ़ाने का आदेश दिया है और यह निर्देश भी दिया कि सरकार को 1 मई तक इस मामले में निर्णय लेकर मुख्य सचिव को हलफनामा दाखिल करना होगा। यह आदेश शिक्षामित्रों के संघर्ष को एक नया मोड़ दे सकता है। हालांकि, सरकार के पास अब केवल एक महीने का समय है, और सवाल यह उठता है कि क्या सरकार इस आदेश को समय पर लागू कर पाएगी या फिर वह और समय की मांग करेगी?
प्रस्ताव और इंतजार
हालांकि, कुछ महीने पहले बेसिक शिक्षा विभाग और वित्त विभाग ने शिक्षामित्रों का मानदेय बढ़ाने का प्रस्ताव मुख्यमंत्री कार्यालय को भेजा था, लेकिन उस प्रस्ताव को मंजूरी नहीं मिली थी। इससे शिक्षामित्रों का विश्वास कमजोर हुआ था, और उन्होंने बड़े पैमाने पर आंदोलन करना शुरू कर दिया। अब कोर्ट के आदेश से उनके संघर्ष को एक नई दिशा मिली है, लेकिन सरकार की तरफ से इस आदेश पर प्रतिक्रिया का इंतजार किया जा रहा है।
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