क्या कहा कोर्ट ने?
न्यायमूर्ति अजय भनोट की एकल पीठ ने अपने फैसले में कहा कि अनुकंपा नियुक्तियों को लेकर अति उदार दृष्टिकोण नहीं अपनाया जा सकता। यदि ऐसा किया गया तो यह नियुक्तियों की पारदर्शिता और योग्यता-आधारित प्रक्रिया को कमजोर कर देगा। कोर्ट ने साफ किया कि यह एक 'राहत की व्यवस्था' है, न कि रोजगार पाने का वैकल्पिक या स्थायी माध्यम।
मामला क्या था?
याचिका चंचल सोनकर द्वारा दाखिल की गई थी, जिनके पति स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, प्रयागराज शाखा में कार्यरत थे। उनका निधन 17 नवंबर 2022 को हुआ था और अंतिम वेतन ₹1,18,800.14 था। याचिकाकर्ता ने अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किया, जिसे बैंक ने 24 जुलाई को यह कहकर खारिज कर दिया कि परिवार की मासिक आय मृतक के अंतिम वेतन के 75% से कम नहीं है।
बैंक के फैसले को कोर्ट ने ठहराया सही
कोर्ट ने बैंक के इस फैसले में कोई गलती नहीं पाई। बैंक ने 'बैंक कर्मचारियों की अनुकंपा नियुक्ति योजना, 2022' के खंड 5 के उस प्रावधान का हवाला दिया, जिसमें स्पष्ट है कि यदि मृतक कर्मचारी के परिवार की कुल आय (सभी स्रोतों से) अंतिम वेतन के 60% से अधिक है, तो वे अनुकंपा नियुक्ति के हकदार नहीं होंगे।
क्यों है यह फैसला महत्वपूर्ण?
कोर्ट ने यह भी कहा कि लोक सेवाओं में नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी होनी चाहिए और इसके लिए खुली प्रतियोगिता आवश्यक है। मृतक आश्रित नियमावली केवल विशेष परिस्थितियों में लागू होती है और इसका दायरा सीमित है। इस नियमावली के तहत किसी को नियुक्ति का "अधिकार" नहीं मिलता, केवल "विचारणीय राहत" दी जाती है।
0 comments:
Post a Comment