यूपी में शिक्षामित्रों की मानदेय वृद्धि पर सुगबुगाहट शुरू

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में वर्षों से शिक्षा व्यवस्था का अभिन्न हिस्सा रहे शिक्षामित्रों की स्थिति आज भी असमंजस और संघर्ष से भरी हुई है। अगस्त 2017 से महज़ ₹10,000 प्रतिमाह मानदेय पर कार्यरत शिक्षामित्र बार-बार सरकार से अपनी वेतनवृद्धि की मांग करते रहे हैं, लेकिन अब तक उनकी इस मांग को गंभीरता से नहीं लिया गया। हालांकि अब इलाहाबाद हाईकोर्ट के हस्तक्षेप से एक बार फिर उम्मीद की किरण नजर आने लगी है।

हाईकोर्ट की टिप्पणी से बढ़ी हलचल

हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि वह शिक्षामित्रों के मानदेय में वृद्धि पर विचार करे। कोर्ट का यह आदेश उस याचिका के संदर्भ में आया है, जिसमें शिक्षामित्रों ने अपनी आर्थिक स्थिति और बढ़ती महंगाई के बीच न्यूनतम मानदेय की अनदेखी को लेकर चिंता जताई थी। कोर्ट ने सरकार से इस संवेदनशील मसले पर ‘सकारात्मक विचार’ करने को कहा है।

विभागों में हुआ मंथन 

हाईकोर्ट की टिप्पणी के बाद बेसिक शिक्षा विभाग, वित्त विभाग और विधि एवं न्याय विभाग के बीच विचार-विमर्श का दौर चला। लेकिन सूत्रों की मानें तो फिलहाल किसी ठोस निर्णय पर नहीं पहुँचा गया है। पहले भी इस मुद्दे पर एक प्रस्ताव मुख्यमंत्री कार्यालय (CMO) भेजा गया था, लेकिन वहाँ से कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली। अब दोबारा फाइल तभी भेजी जाएगी जब CMO की ओर से विशेष निर्देश आएँगे।

शिक्षामित्रों का संघर्ष

शिक्षामित्रों ने अपने अधिकारों और सम्मान के लिए लंबा संघर्ष किया है। गाँवों और दूरदराज के इलाकों में शिक्षा की ज्योति जलाने वाले ये कार्यकर्ता अक्सर खराब वेतन, नौकरी की अस्थिरता और सरकारी उपेक्षा के शिकार होते आए हैं। कई बार वे जिलों से लेकर राजधानी तक प्रदर्शन कर चुके हैं, लेकिन परिणामस्वरूप सिर्फ आश्वासन ही मिला।

क्या कहते हैं जानकार?

शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि ₹10,000 जैसे मामूली मानदेय में किसी परिवार का निर्वाह कर पाना नामुमकिन सा है। राज्य सरकार को चाहिए कि वह शिक्षामित्रों को कम से कम उतना मानदेय दे, जिससे उनकी न्यूनतम आवश्यकताएँ पूरी हो सकें। साथ ही, इन्हें स्थायीकरण की दिशा में भी कदम उठाना आवश्यक है, ताकि भविष्य की अनिश्चितता समाप्त हो सके।

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