चीन छोड़ रहीं बड़ी कंपनियां: भारत के लिए मौका!

नई दिल्ली – अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते ट्रेड वॉर ने वैश्विक व्यापार में बड़ा बदलाव लाना शुरू कर दिया है। दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच जारी इस तनाव का असर अब कंपनियों के फैसलों पर भी दिखने लगा है। अमेरिका ने चीन से आने वाले कई उत्पादों पर 245% तक आयात शुल्क लगा दिया है, जिससे अमेरिकी कंपनियों के लिए चीन में उत्पादन करना अब घाटे का सौदा बन गया है।

इस माहौल में कई बड़ी अमेरिकी कंपनियां चीन छोड़ने की तैयारी में हैं और अपने उत्पादन ठिकाने बदल रही हैं। भारत सरकार इसे एक बड़े मौके के रूप में देख रही है। खासकर इलेक्ट्रॉनिक्स, दवाइयों और खिलौना उद्योग जैसे क्षेत्रों में भारत को बड़ा फायदा मिलने की उम्मीद है।

सरकार की सक्रियता बढ़ी, कंपनियों से मीटिंग

इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत सरकार ने हाल ही में इंडस्ट्री के प्रमुख लोगों के साथ मीटिंग की, जिसमें अमेरिका में भारतीय कंपनियों की मौजूदगी बढ़ाने और अमेरिकी कंपनियों को भारत लाने पर बातचीत हुई। सरकार चाहती है कि चीन से बाहर निकल रहीं कंपनियां भारत को अपना अगला मैन्युफैक्चरिंग हब बनाएं।

सूत्रों के मुताबिक भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते को लेकर बातचीत जल्द ही शुरू होने वाली है। शुरुआत वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से होगी और मई के मध्य में आमने-सामने मीटिंग की संभावना जताई गई है। इससे अमेरिकी कंपनियां भारत आ सकती हैं।

भारत के पास मौका, पर चुनौती भी

अमेरिका ने जहां चीन से आने वाले इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों पर भारी टैक्स लगा दिया है, वहीं भारत और 75 अन्य देशों से आने वाले सामान पर यह टैक्स नहीं लगाया गया है। उदाहरण के लिए, चीन में बना आईफोन अमेरिका में 20% टैक्स के दायरे में आता है, जबकि भारत में बने ऐसे उत्पादों पर टैक्स नहीं लगता।

हालांकि, इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स मानते हैं कि यह मौका तभी काम आएगा जब सरकार सावधानीपूर्वक और रणनीतिक योजना बनाए। उनका कहना है कि अगर भारत ने ढील बरती, तो वियतनाम इस पूरे मौके का सबसे बड़ा लाभार्थी बन सकता है।

वियतनाम से मिल रही है कड़ी टक्कर

वियतनाम पहले से ही अमेरिका को सैमसंग जैसे ब्रांड्स के स्मार्टफोन और गैजेट्स का सबसे बड़ा निर्यातक है। वहां की इलेक्ट्रॉनिक्स सप्लाई चेन भारत की तुलना में ज्यादा मजबूत मानी जाती है। साथ ही, वहां पहले से कई चीनी कंपनियों का निवेश भी मौजूद है। भारत के सामने अब दोहरी चुनौती है—पहले अमेरिकी कंपनियों को आकर्षित करना और फिर उन्हें लंबे समय तक टिकाए रखना।

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