यह मिसाइल न केवल भारत की समुद्री सुरक्षा को कई गुना मजबूत बनाएगी, बल्कि परमाणु त्रय (nuclear triad) को भी और अधिक सुदृढ़ करेगी। हालांकि के-6 अभी विकास के चरण में है, परन्तु रक्षा सूत्रों के अनुसार इसे 2030 के आस-पास भारतीय नौसेना की अगली पीढ़ी की परमाणु पनडुब्बियों में शामिल किया जा सकता है।
पनडुब्बी से प्रक्षेपण: अचूक और अदृश्य हमला
के-6 एक पनडुब्बी से प्रक्षेपित बैलिस्टिक मिसाइल है, जिसे भारत की भविष्य की एस-5 परमाणु पनडुब्बियों से लॉन्च किया जाएगा। इससे भारत को "second-strike capability" यानी दुश्मन के पहले हमले के बाद भी पलटवार की क्षमता मिलेगी और वो भी समंदर के नीचे से, पूरी तरह छुपे रहकर।
रेंज: 8,000 से 12,000 किलोमीटर
के-6 को इतना सटीक और शक्तिशाली बनाया जा रहा है कि यह एशिया, यूरोप और अफ्रीका के बड़े हिस्से समेत लगभग आधी दुनिया को कवर कर सकती है।
राष्ट्रीय सुरक्षा में नया अध्याय
भारत पहले ही के-15 और के-4 जैसी मिसाइलों के ज़रिए SLBM तकनीक में गहरी पकड़ बना चुका है, और अब के-6 के साथ भारत अपने समुद्री डोमेन को पूरी तरह से "स्ट्रैटेजिक डिटरेंस" से लैस करने की दिशा में अग्रसर है।
MIRV तकनीक से लैस के-6
के-6 मिसाइल की सबसे बड़ी ताकत इसकी MIRV (Multiple Independently Targetable Reentry Vehicles) तकनीक है। इसका मतलब यह है कि इस मिसाइल में एक नहीं, बल्कि कई वारहेड्स लगे होंगे, जो अलग-अलग दिशाओं में उड़कर कई लक्ष्यों को एक साथ तबाह कर सकते हैं। यानी एक बार प्रक्षेपण के बाद, ये मिसाइल दुश्मन के अनेक ठिकानों पर अलग-अलग दिशाओं से प्रहार करने में सक्षम होगी।
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