बिहार जमीन सर्वे 2025: 6 चरणों में होगी संपत्ति की पैमाइश

पटना। बिहार सरकार ने ज़मीन से जुड़े वर्षों पुराने विवादों और अभिलेखों की गड़बड़ियों को खत्म करने के लिए एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। बिहार जमीन सर्वेक्षण 2025 अभियान की शुरुआत हो चुकी है, जो छह पारदर्शी चरणों में संपन्न होगा। इसका उद्देश्य है–हर ज़मीन मालिक को उसकी संपत्ति पर स्पष्ट और वैध अधिकार दिलाना।

बिहार एक कृषि प्रधान राज्य है, जहां ज़मीन केवल एक संपत्ति नहीं, बल्कि जीविका का मूल स्रोत मानी जाती है। ऐसे में ज़मीन से जुड़े विवादों, अधूरे खतियानों, अप्रासंगिक नक्शों और रजिस्टरों में दर्ज ग़लत जानकारियों से कई परिवार पीड़ित हैं। नए सर्वेक्षण की प्रक्रिया इन्हीं समस्याओं का स्थायी समाधान साबित होगी।

चरण 1: जानकारी संग्रह और प्रपत्र-2 भरवाना

अभियान की शुरुआत अमीन द्वारा प्रत्येक गांव में जाकर होती है। वे हर ज़मीन मालिक से प्रपत्र-2 भरवाते हैं जिसमें खाता संख्या, खेसरा नंबर, ज़मीन की सीमा, फसल का प्रकार, किरायेदारी जैसे विवरण शामिल होते हैं। यह प्राथमिक डेटा कलेक्शन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है।

चरण 2: नक्शा निर्माण और सीमांकन

इसके बाद अत्याधुनिक तकनीकों जैसे GPS और ड्रोन सर्वे की मदद से खेसरा वार नक्शा तैयार किया जाता है। ज़मीन का सीमांकन करके भूखंड की सटीक स्थिति और उसका आकार दर्ज किया जाता है।

चरण 3: दावा और सत्यापन प्रक्रिया

ज़मीन मालिकों को अब अपने-अपने भूखंडों पर दावा करने का अवसर मिलता है। उनके दस्तावेज़ों और नक्शों का मिलान करके दावों की पुष्टि की जाती है।

चरण 4: आपत्ति दर्ज और समाधान

यदि किसी ज़मीन पर दो पक्षों के बीच विवाद होता है, तो इसे तहसील स्तर पर आपत्ति के रूप में दर्ज किया जाता है। राजस्व अधिकारी इसकी सुनवाई कर समाधान करते हैं ताकि विवादित ज़मीन की स्थिति स्पष्ट हो सके।

चरण 5: रिकॉर्ड प्रकाशन और लगान निर्धारण

सत्यापित रिकॉर्ड को सार्वजनिक रूप से प्रकाशित किया जाता है। साथ ही हर भूखंड पर लगने वाले लगान की दर तय की जाती है। इससे पारदर्शिता बनी रहती है और आगे की बंदोबस्ती प्रक्रिया सुगम होती है।

चरण 6: अंतिम आपत्ति और फाइनल रिकॉर्ड

यदि किसी को अंतिम प्रकाशन के बाद भी आपत्ति हो, तो उन्हें फिर से सुनवाई का अवसर मिलता है। इसके बाद फाइनल भूमि रजिस्टर तैयार किया जाता है जो कानूनी रूप से मान्य होगा।

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