कावेरी 2.0: स्वदेशी जेट इंजन में भारत की नई उड़ान

नई दिल्ली: भारत में रक्षा तकनीक के क्षेत्र में एक बार फिर हलचल तेज़ हो गई है। खबर ये है कि GTRE (Gas Turbine Research Establishment) अब कावेरी जेट इंजन के एक नए और हल्के वर्ज़न — कावेरी 2.0 — पर काम कर रहा है। इस प्रोजेक्ट का मकसद सिर्फ एक इंजन बनाना नहीं है, बल्कि भारत को इंजन तकनीक में पूरी तरह आत्मनिर्भर बनाना है।

अब क्यों जरूरी हो गया है कावेरी 2.0?

कावेरी 2.0 सिर्फ एक तकनीकी प्रोजेक्ट नहीं है, ये एक स्ट्रैटेजिक ज़रूरत बन चुका है। अभी तक तेजस फाइटर जेट्स में अमेरिकी GE कंपनी का F404-IN20 इंजन लगाया जा रहा है, जो आफ्टरबर्नर के बिना 54 kN और आफ्टरबर्नर के साथ 84 kN का थ्रस्ट देता है। लेकिन जब लड़ाकू विमान की सबसे जरूरी चीज ही विदेश से आयात करनी पड़े, तो आत्मनिर्भरता सिर्फ एक शब्द बनकर रह जाती है।

भारत का लक्ष्य है कि 2047 तक एयरफोर्स की ताकत को 60 स्क्वाड्रन तक ले जाया जाए। और ये तभी मुमकिन होगा जब भारत अपने फाइटर जेट्स के लिए खुद इंजन बना सके। इसको लेकर भारत के द्वारा जेट इंजन बनाने पर काम तेज कर दिया गया हैं।

इंजन बनाना कितना मुश्किल है?

इंजन बनाना दुनिया की सबसे कठिन इंजीनियरिंग चुनौतियों में से एक माना जाता है। इसमें सुपर हाई टेम्परेचर, अल्ट्रा-प्रिसाइज़ मैटेरियल और टॉप-लेवल कंप्यूटेशन की ज़रूरत होती है। यहां तक कि चीन, जो ड्रोन से लेकर फिफ्थ जेनरेशन जेट्स तक बनाता है, अभी भी इंजन टेक्नोलॉजी में पूरी तरह आत्मनिर्भर नहीं बन पाया है।

क्या उम्मीद की जा सकती है?

GTRE का कहना है कि वो कावेरी 2.0 को इतना मॉड्यूलर बनाएंगे कि भविष्य में AMCA (Advanced Medium Combat Aircraft) जैसे फाइटर जेट्स में भी इसका पावरफुल वर्ज़न इस्तेमाल किया जा सके। अगर ये इंजन सफल होता है, तो भारत: तेजस Mk1A जैसे विमानों के लिए पूरी तरह स्वदेशी हो जाएगा। इंजन तकनीक में आत्मनिर्भर देशों की लिस्ट में शामिल हो जाएगा और भविष्य में जेट इंजन एक्सपोर्ट करने की स्थिति में भी आ सकता है

0 comments:

Post a Comment