हाइड्रोजन बम का इतिहास
हाइड्रोजन बम का परीक्षण 1952 में अमेरिका द्वारा किया गया था। इसका निर्माण परमाणु बम से कहीं अधिक शक्तिशाली है, क्योंकि इसमें नाभिकीय संलयन (nuclear fusion) का उपयोग किया जाता है। इसके एक साल बाद, रूस ने भी इसी तरह का परीक्षण किया और यह बम उसके भी शस्त्रागार का हिस्सा बन गया। इसके बाद, ब्रिटेन, चीन, भारत, पाकिस्तान और इजराइल ने भी अपनी सैन्य क्षमताओं को मजबूत करने के लिए हाइड्रोजन बम बनाएं।
हाइड्रोजन बम की विनाशकारी शक्ति
हाइड्रोजन बम की शक्ति इतनी भयावह है कि यह किसी भी बड़े शहर को पलभर में तबाह कर सकता है। यह बम न केवल शारीरिक रूप से भयंकर तबाही मचाता है, बल्कि इसके असर से वातावरण, जलवायु और जीवन के लिए भी गंभीर खतरे उत्पन्न होते हैं। बम के फटने से जो ऊर्जा उत्पन्न होती है, वह लाखों डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकती है, जिससे आसपास के क्षेत्र में जीवन का नामो-निशान मिट सकता है।
अंतरराष्ट्रीय समझौते और निरस्त्रीकरण
हाइड्रोजन बम जैसे घातक हथियारों के बढ़ते प्रभाव के बावजूद, कई अंतरराष्ट्रीय समझौते और निरस्त्रीकरण की पहलें इस दिशा में काम कर रही हैं। न्यूक्लियर नॉन-प्रोलिफरेशन ट्रीटी (NPT) जैसे समझौते देशों के बीच हथियारों के प्रसार को रोकने का प्रयास करते हैं। इसके बावजूद, कुछ देशों ने अपने हथियारों का विस्तार किया है, जो वैश्विक सुरक्षा के लिए चिंता का विषय बना हुआ है।
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