तेजस से उम्मीदें, लेकिन GE इंजन से बाधाएं
सरकार ने हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा विकसित स्वदेशी तेजस लड़ाकू विमान को प्राथमिकता दी हैं। तेजस एक चौथी पीढ़ी का मल्टीरोल फाइटर जेट है। इसके उन्नत संस्करण, तेजस MK1A, को वायुसेना ने 83 यूनिट्स के ऑर्डर दिए हैं। लेकिन HAL अभी भी इन विमानों का बड़े पैमाने पर उत्पादन करने में अक्षम है।
इसकी दो प्रमुख वजहें हैं – HAL की सीमित उत्पादन क्षमता और तेजस में इस्तेमाल होने वाले अमेरिकी GE इंजन की आपूर्ति में देरी। अमेरिकी कंपनी से इंजन आने में लगातार देरी के चलते तेजस प्रोजेक्ट भी समय पर आगे नहीं बढ़ पा रहा।
इसरो से सीखने का समय
यहीं पर हमें इसरो की प्रेरणादायक कहानी याद आती है। 1990 के दशक में जब भारत ने भूस्थैतिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (GSLV) के लिए क्रायोजेनिक इंजन विकसित करने की कोशिश की, तब भी अमेरिका ने MTCR का हवाला देकर रूस पर दबाव बनाया और भारत को तकनीक नहीं मिल पाई। लेकिन इसरो ने हार नहीं मानी।
लगभग दो दशकों की मेहनत के बाद, 2014 में भारत ने अपने पहले स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन के साथ GSLV-D5 का सफल प्रक्षेपण किया। आज, भारत CE-20 जैसे एडवांस इंजन बना रहा है, जो गगनयान जैसे मानव मिशनों के लिए भी योग्य है।
अब समय है स्वदेशी जेट इंजन का
अगर इसरो, बिना विदेशी सहायता के, इतनी जटिल क्रायोजेनिक तकनीक को आत्मनिर्भरता की मिसाल बना सकता है, तो HAL और रक्षा अनुसंधान संगठन (DRDO) भी मिलकर स्वदेशी जेट इंजन विकसित कर सकते हैं। यह न केवल भारत की सैन्य शक्ति को मज़बूत करेगा, बल्कि विदेशी निर्भरता भी समाप्त होगी।
देश को अब एक दीर्घकालिक विज़न की आवश्यकता है – जिसमें आत्मनिर्भर रक्षा निर्माण, स्थानीय तकनीक और तेज़ी से निर्णय लेना सबसे ज़रूरी हैं। तेजस की तरह एक दिन 'स्वदेशी जेट इंजन' भी भारत की शान बन सकता है बस जरूरत है तो इसरो जैसी दूरदर्शिता और प्रतिबद्धता की।
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