भारत की स्थायी सदस्यता के लिए फ्रांस का समर्थन
फ्रांस ने हमेशा से यह रेखांकित किया है कि सुरक्षा परिषद का सुधार आवश्यक है और इस सुधार के हिस्से के रूप में भारत को स्थायी सदस्यता मिलनी चाहिए। फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने भी कई बार कहा है कि सुरक्षा परिषद के विस्तार की आवश्यकता है, जिसमें जर्मनी, जापान, भारत और ब्राजील को स्थायी सदस्य बनाया जाना चाहिए। साथ ही, अफ्रीका का प्रतिनिधित्व करने वाले दो देशों को भी स्थायी सदस्यता मिलनी चाहिए। यह बयान फ्रांस के स्थायी सदस्यता को लेकर भारत के समर्थन की लंबी नीति को दर्शाता है।
भारत को स्थायी सदस्यता दिलाने के लिए फ्रांस का समर्थन 2019 से स्पष्ट हो गया था, जब फ्रांस ने जोर देकर कहा था कि सुरक्षा परिषद में सुधार के लिए उसका विस्तार जरूरी है। फ्रांस का मानना है कि यह सुधार न केवल यूएनएससी के प्रभाव को बढ़ाएगा, बल्कि यह वैश्विक शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भी एक प्रभावी कदम होगा।
चीन की आपत्ति और भारत की राह की बाधाएं
हालांकि, भारत को स्थायी सदस्यता दिलाने की दिशा में प्रमुख चुनौती चीन के विरोध के रूप में सामने आई है। चीन सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता पाने वाला एकमात्र एशियाई देश है और वह भारत की स्थायी सदस्यता का विरोध करता है। इसके पीछे एक बड़ा कारण दोनों देशों के बीच सीमा विवाद हैं। चीन का तर्क है कि सुरक्षा परिषद के विस्तार के बाद उसके प्रभाव में कमी आ सकती है, जिससे उसका रणनीतिक लाभ कम हो सकता है।
यह भी सच है कि चीन ने हमेशा भारतीय दावेदारी का विरोध किया है, और उसका यह रुख किसी भी समय बदलने की संभावना कम दिखाई देती है। इस प्रकार, भारत को स्थायी सदस्यता पाने के लिए केवल फ्रांस के समर्थन पर निर्भर नहीं रह सकता। भारत को चीन के विरोध को पार करते हुए अन्य देशों को भी अपने पक्ष में लाने की आवश्यकता होगी।
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