कोर्ट ने साफ कहा कि अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य केवल पारिवारिक आर्थिक संकट से उबरने में मदद देना है, न कि योग्यता आधारित पदों पर सामाजिक प्रतिष्ठा दिलाना। वहीं शिक्षक जैसे संवेदनशील और गुणवत्तापूर्ण पद पर नियुक्ति केवल सार्वजनिक व निष्पक्ष चयन प्रक्रिया के तहत ही की जा सकती है।
शासनादेशों को रद्द का आदेश
हाईकोर्ट ने वर्ष 4 सितंबर 2000 और 15 फरवरी 2013 को जारी शासनादेशों को रद्द करते हुए कहा कि ये आदेश संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 16 (सार्वजनिक नियुक्तियों में समान अवसर), और अनुच्छेद 21A (बच्चों को मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा का अधिकार) के खिलाफ हैं। अदालत ने राज्य सरकार को इन आदेशों पर भविष्य में कोई कार्रवाई न करने का स्पष्ट निर्देश दिया है।
गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं
कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि यदि देश के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण और मौलिक शिक्षा देनी है, तो शिक्षक की नियुक्ति में कोई भी दोषपूर्ण या अपारदर्शी प्रक्रिया स्वीकार नहीं की जा सकती। शिक्षक पद सिर्फ डिग्री या रोजगार का साधन नहीं है, बल्कि यह एक योग्यता और कर्तव्यनिष्ठा से जुड़ी सामाजिक जिम्मेदारी है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि "योग्यता के आधार पर चयन ही भर्ती की संवैधानिक प्रक्रिया की आधारशिला है।" यदि शिक्षक पद पर नियुक्ति में इस प्रक्रिया का उल्लंघन होगा तो यह न केवल शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित करेगा, बल्कि संविधान प्रदत्त अधिकारों का उल्लंघन भी होगा।
याचिकाकर्ताओं को वैकल्पिक पद पर नियुक्ति पर विचार
कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को राहत देते हुए यह निर्देश दिया कि राज्य सरकार उन्हें सहायक अध्यापक के अलावा किसी अन्य उपयुक्त पद पर तीन माह के भीतर नियुक्ति के संबंध में विचार कर निर्णय ले। अदालत ने अपने आदेश की प्रति प्रमुख सचिव, बेसिक शिक्षा को भेजते हुए स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि आदेश का त्वरित और पूर्ण अनुपालन सुनिश्चित किया जाए।
0 comments:
Post a Comment