सरकार की मंशा साफ है—हर किसान और ज़मीन मालिक को अपनी ज़मीन पर कानूनी हक मिले, भू-रिकॉर्ड पूरी तरह डिजिटल हों और ज़मीन से जुड़े फर्जीवाड़े पर पूरी तरह रोक लगे। अभियान के जरिए न सिर्फ ज़मीन का वैज्ञानिक ढंग से सीमांकन होगा, बल्कि इसे डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी उपलब्ध कराया जाएगा।
छह चरणों में होगा पूरा सर्वेक्षण
1. जानकारी संग्रह और प्रपत्र-2
अभियान की शुरुआत हर गांव में अमीन द्वारा सभी ज़मीन मालिकों से प्रपत्र-2 भरवाने से होती है। इसमें खाता संख्या, खेसरा नंबर, भूमि की सीमा, फसल का प्रकार, किरायेदारी की स्थिति जैसी अहम जानकारियां दर्ज की जाती हैं।
2. नक्शा निर्माण और सीमांकन
इसके बाद आधुनिक तकनीकों की मदद से खेसरा-वार नक्शा तैयार किया जाता है। सीमांकन की प्रक्रिया के तहत हर भूखंड की सटीक स्थिति और सीमा की पुष्टि की जाती है, जिससे बाद में किसी प्रकार की भ्रम या विवाद की स्थिति से बचा जा सके।
3. दावा और सत्यापन प्रक्रिया
ज़मीन मालिकों को अपने-अपने भूखंड पर दावा करने का अवसर दिया जाता है। उनके दस्तावेजों और नक्शों के आधार पर इन दावों की पूरी जांच और सत्यापन किया जाता है।
4. आपत्ति दर्ज और समाधान
अगर किसी ज़मीन पर विवाद है या दो पक्षों के बीच दावा है, तो इस चरण में उसकी सुनवाई की जाती है। तहसील स्तर पर अधिकारी आपत्तियों को रिकॉर्ड करते हैं और समाधान करते हैं।
5. रिकॉर्ड प्रकाशन और लगान निर्धारण
सत्यापित रिकॉर्ड को सार्वजनिक रूप से प्रकाशित किया जाता है। इसके साथ ही प्रत्येक भूखंड के लिए लगान दर भी तय की जाती है। यह पारदर्शिता की दिशा में एक बड़ा कदम है।
6. अंतिम आपत्ति और फाइनल रिकॉर्ड
यदि किसी को अब भी कोई आपत्ति हो, तो अंतिम सुनवाई का अवसर दिया जाता है। इसके बाद भू-रिकॉर्ड को फाइनल रूप से अपडेट कर भूमि रजिस्टर में दर्ज किया जाता है।
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