सुखोई की आंखें होंगी और तेज़
इस अपग्रेड का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है 'विरूपाक्ष' AESA रडार। यह भारत में ही विकसित किया गया गैलियम नाइट्राइड (GaN) आधारित एक्टिव इलेक्ट्रॉनिकली स्कैन्ड एरे रडार है, जिसमें 2,400 ट्रांसमिट/रिसीव मॉड्यूल्स होंगे। इसकी क्षमता इतनी जबरदस्त है कि यह 300 से 400 किलोमीटर तक की दूरी पर दुश्मन के स्टील्थ फाइटर जेट्स को भी पहचान सकता है।
Mk-III से लैस होगा ‘सुपर सुखोई’
इस अपग्रेडेड सुखोई को भारत में बनी लंबी दूरी की हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल 'अस्त्र Mk-III' से लैस किया जाएगा। यह मिसाइल करीब 160 किलोमीटर तक दुश्मन के फाइटर जेट्स को निशाना बना सकती है। यानी पहले हमला, पहले जीत।
चीन के J-35A को देगा सीधा टक्कर
भारतीय वायुसेना के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, अपग्रेड के बाद Su-30MKI आसानी से चीन के J-35A स्टील्थ फाइटर को काउंटर कर सकेगा। इसका मतलब ये है कि भारत के पास अब एक ऐसा फाइटर जेट होगा जो स्टील्थ टेक्नोलॉजी और लॉन्ग-रेंज वेपन सिस्टम के मामले में चीन और पाकिस्तान दोनों पर भारी पड़ेगा।
स्वदेशीकरण की ओर बड़ा कदम
‘सुपर सुखोई’ प्रोजेक्ट न केवल एक टेक्नोलॉजिकल छलांग है, बल्कि यह मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत मिशन को भी मजबूती देता है। इस अपग्रेड में रडार, एवियोनिक्स, इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर सिस्टम, और हथियारों का अधिकतर हिस्सा भारत में ही विकसित और निर्मित होगा।
भारत के लिए नया युग, नई वायुशक्ति
सुखोई का ये सुपर अपग्रेड भारतीय वायुसेना को एक बियॉन्ड विजुअल रेंज (BVR) सुपरमैसी देगा, जो 21वीं सदी की हवाई लड़ाई में निर्णायक साबित हो सकता है। भारत का यह कदम सिर्फ एक अपग्रेड नहीं, बल्कि एक स्ट्रैटेजिक मेसेज है – कि देश न केवल अपने सुरक्षा तंत्र को आधुनिक बना रहा है, बल्कि तकनीकी आत्मनिर्भरता की राह पर भी तेज़ी से बढ़ रहा है।
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