1. ब्लड ट्रांसफ्यूजन में आसानी
अगर दोनों पार्टनर का ब्लड ग्रुप सेम है, तो इमरजेंसी में एक-दूसरे को खून देना आसान हो सकता है, जिससे ज़िंदगी बचाई जा सकती है।
2. RH फैक्टर का मेल जरूरी है
ब्लड ग्रुप एक जैसा होने पर भी अगर RH फैक्टर (Positive या Negative) अलग है, तो गर्भावस्था में दिक्कत आ सकती है। जैसे: अगर पत्नी RH Negative है और पति RH Positive, तो बच्चे पर असर पड़ सकता है।
3. संतान पर पड़ सकता है असर
सेम ब्लड ग्रुप होने पर अगर RH incompatibility है, तो पहली प्रेग्नेंसी सामान्य रह सकती है, लेकिन दूसरी में रिस्क बढ़ सकता है — जैसे एनीमिया या जन्म से पहले ही गर्भपात। ऐसे में डॉक्टर की सलाह लेना बेहतर हैं।
4. जेनेटिक बीमारियों का रिस्क
कुछ मामलों में, अगर दोनों पार्टनर में एक ही तरह की जेनेटिक बीमारियों के जीन मौजूद हों, तो बच्चे को वह बीमारी होने की संभावना ज़्यादा हो सकती है। यह ब्लड ग्रुप से जुड़े नहीं, बल्कि जेनेटिक कम्पैटिबिलिटी से जुड़ा विषय है।
5. मानसिक संतुलन पर कोई असर नहीं
कई लोगों को भ्रम होता है कि ब्लड ग्रुप से शादीशुदा जीवन या व्यवहार प्रभावित होता है, पर ऐसा कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इसलिए ब्लड ग्रुप से स्वभाव का मेल कोई बड़ा फ़ैक्टर नहीं है।
6. मेडिकल जांच से बच सकते हैं रिस्क से
अगर पति-पत्नी का ब्लड ग्रुप एक जैसा है, तो डॉक्टर से RH फैक्टर और जेनेटिक काउंसलिंग ज़रूर करवाएं, ताकि भविष्य में गर्भावस्था और बच्चे की सेहत से जुड़ी कोई परेशानी न हो।
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