बता दें की इस फैसले के बाद, अब ऐसे लाखों रैयतों को बड़ी राहत मिलेगी, जिन्होंने वर्षों पहले आपसी सहमति से ज़मीनों की अदला-बदली की थी, लेकिन कानूनी प्रक्रिया पूरी न होने के कारण वे जमीन पर अपने अधिकार से वंचित रह रहे थे।
क्या है फैसला?
अब यदि दो या दो से अधिक रैयत आपसी सहमति से भूमि का आदान-प्रदान करते हैं, और यह भूमि अदला-बदली मौखिक रूप से हुई है, तो उसे भूमि सर्वेक्षण रिपोर्ट में दर्ज किया जाएगा, और कानूनी वैधता प्रदान की जाएगी। इससे न केवल भूमि स्वामित्व को लेकर वर्षों से चले आ रहे विवाद खत्म होंगे, बल्कि भूमि रिकॉर्ड भी अधिक पारदर्शी और अद्यतन बनेंगे।
सरकार का मकसद
राज्य सरकार का उद्देश्य है कि जमीन से जुड़े मामलों को सरल, पारदर्शी और आम लोगों के हित में बनाया जाए। इस फैसले से ग्रामीण क्षेत्रों में खासतौर पर उन लोगों को लाभ मिलेगा, जो वर्षों से जमीन का उपयोग तो कर रहे हैं लेकिन कागजी कार्रवाई के अभाव में मालिकाना हक से वंचित हैं।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
भूमि कानूनों के जानकारों का मानना है कि यह फैसला बिहार में भूमि सुधार की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है। इससे भविष्य में जमीन विवादों की संख्या में भारी कमी आएगी और राजस्व विभाग के रिकॉर्ड भी सटीक बन सकेंगे। ग्रामीण क्षेत्रों में इस निर्णय का स्वागत किया जा रहा है। बहुत से रैयतों ने इसे "जनहित में लिया गया सबसे बड़ा फैसला" बताया है।
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