बायोमीट्रिक सत्यापन
बायोमीट्रिक सत्यापन प्रणाली, जिसमें परीक्षार्थियों के फिंगरप्रिंट और आइरिस (आंख की पुतली) की पहचान की जाती है, यूपीपीएससी द्वारा लागू की गई एक महत्वपूर्ण तकनीकी पहल है। इसका उद्देश्य फर्जी परीक्षार्थियों की पहचान करना और यह सुनिश्चित करना है कि केवल योग्य और सही उम्मीदवार ही परीक्षा में सम्मिलित हों।
इस प्रणाली के तहत, प्रत्येक उम्मीदवार का बायोमीट्रिक डेटा लिया जाता है और इसे परीक्षा के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली एजेंसी के द्वारा सत्यापित किया जाता है। यदि किसी परीक्षा केंद्र पर इस सत्यापन प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी होती है, तो उस केंद्र की संचालक एजेंसी को जुर्माना भरना होगा।
जुर्माने की सख्त नीति
यूपीपीएससी ने यह सुनिश्चित करने के लिए एक कड़ी नीति बनाई है कि एजेंसियां अपनी जिम्मेदारी को गंभीरता से लें। यदि बायोमीट्रिक सत्यापन में कोई गड़बड़ी पाई जाती है, तो संबंधित एजेंसी को जुर्माना भरने के साथ-साथ एक कड़ी चेतावनी भी दी जाती है।
उदाहरण के तौर पर, यदि एक केंद्र पर 300 छात्र उपस्थित होते हैं और एजेंसी को प्रति छात्र 54 रुपये का भुगतान किया गया है, तो कुल भुगतान 16,200 रुपये होगा। यदि बायोमीट्रिक सत्यापन में कोई गड़बड़ी पाई जाती है, तो एजेंसी को 10 गुणा जुर्माना देना होगा, यानी इस मामले में 1,62,000 रुपये।
जुर्माने की राशि बढ़ेगी
इसके अलावा, अगर एक से अधिक गड़बड़ी पाई जाती है, तो जुर्माने की राशि भी बढ़ती जाएगी। दो गड़बड़ियों पर 20 गुणा, तीन गड़बड़ियों पर 30 गुणा और इसी तरह यह बढ़ता जाएगा। इससे यह स्पष्ट है कि यूपीपीएससी परीक्षा केंद्रों पर बायोमीट्रिक सत्यापन प्रक्रिया को बहुत गंभीरता से ले रहा है।
काली सूची में डालना
यदि किसी परीक्षा केंद्र पर बार-बार गड़बड़ियां पाई जाती हैं, तो संबंधित एजेंसी को केवल जुर्माना ही नहीं, बल्कि सदैव के लिए काली सूची में भी डाल दिया जाएगा। यह कदम एजेंसियों की जवाबदेही तय करने के लिए उठाया गया है ताकि वे अपनी जिम्मेदारी को न सिर्फ समझें, बल्कि उसे पूरी ईमानदारी से निभाएं।
परीक्षा की पवित्रता और पारदर्शिता
यूपीपीएससी का मानना है कि बायोमीट्रिक सत्यापन प्रणाली को सख्ती से लागू करने से परीक्षा की पवित्रता बनी रहेगी और फर्जी अभ्यर्थियों को पकड़ने में मदद मिलेगी। यह कदम परीक्षा प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी बनाएगा और उम्मीदवारों को निष्पक्ष अवसर देगा।
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