GCAP: भविष्य का फाइटर जेट
दिसंबर 2022 में लॉन्च हुआ GCAP प्रोजेक्ट तीन देशों के सामूहिक प्रयास का परिणाम है, जिसका उद्देश्य साल 2035 तक एक 6th जनरेशन स्टील्थ फाइटर जेट तैयार करना है। यह जेट न केवल एडवांस्ड स्टेल्थ तकनीकों से लैस होगा, बल्कि इसमें AI इंटीग्रेशन, नेटवर्क-केंद्रित युद्ध क्षमता, और एडवांस एवियोनिक्स की खूबियाँ भी शामिल होंगी।
बता दें की ब्रिटेन का Tempest Program, जापान का Mitsubishi F-2 Replacement Plan, और इटली की रणनीतिक जरूरतें, ये सभी GCAP के दायरे में आती हैं। लेकिन इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट की लागत भी उतनी ही भारी है। अनुमान है कि यह प्रोजेक्ट दसियों अरब डॉलर तक पहुंच सकता है।
भारत की भागीदारी: फायदे और चुनौतियाँ
भारत लंबे समय से अपनी रक्षा क्षमता को अपग्रेड करने की दिशा में सक्रिय है। IDRW की रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने जापान सरकार से आधिकारिक तौर पर संपर्क किया है और GCAP में संभावित भागीदारी के बारे में चर्चा की है। हालांकि भारत की ओर से इसपर कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई हैं। लेकिन भारत इस प्रोजेक्ट के लिए एक उपयुक्त भागीदार नजर आता है: भारत, जापान, ब्रिटेन और इटली — चारों देशों के बीच मजबूत कूटनीतिक और रक्षा संबंध हैं।
जापान की चिंता: रूस के साथ भारत के रिश्ते
हालांकि जापान इस प्रोजेक्ट को लेकर उत्साहित है, लेकिन भारत की भागीदारी को लेकर वह पूरी तरह आश्वस्त नहीं है। इसकी सबसे बड़ी वजह भारत और रूस के बीच दशकों पुराने रक्षा संबंध हैं। भारत आज भी रूस के Su-30MKI फाइटर जेट्स और S-400 एयर डिफेंस सिस्टम को ऑपरेट करता है। जापान को डर है कि GCAP की संवेदनशील तकनीकें, खासकर स्टेल्थ, एवियोनिक्स और प्रणोदन प्रणाली अनजाने में रूस तक पहुंच सकती हैं।
क्या भारत बना सकता है भरोसेमंद साथी?
भारत पिछले कुछ वर्षों में अमेरिका, फ्रांस और इजराइल जैसे देशों के साथ हाई-एंड डिफेंस टेक्नोलॉजी साझा कर चुका है। इसके बावजूद, रूस के साथ उसका ऐतिहासिक रिश्ता जापान जैसे देशों के लिए चिंता का कारण बना हुआ है। GCAP की सफलता 2035 की डेडलाइन पर निर्भर करती है। ज्यादा देशों के शामिल होने से तकनीकी साझेदारी का जोखिम बढ़ता है, जिससे देरी की आशंका भी बढ़ जाती है। जापान के लिए यह दोधारी तलवार है — एक ओर सामरिक साझेदारी से चीन के खिलाफ मजबूत गठबंधन का मौका, दूसरी ओर टेक्नोलॉजी लीक का डर।
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