रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, भारत 155 मिमी के तोपखाने गोलों का उत्पादन महज 300 से 400 डॉलर में कर रहा है, जो पश्चिमी देशों में बने तोप के गोलों की तुलना में बहुत सस्ता है। यही कारण है कि भारतीय तोप के गोलों की मांग में जबरदस्त वृद्धि हुई है। पश्चिमी देशों के लिए, जहां तोप के गोलों की कीमत बहुत अधिक हो गई है, भारत ने गुणवत्ता के साथ-साथ किफायती मूल्य पर अपने उत्पादों को पेश किया है, जिसने उसे वैश्विक बाजार में एक नई पहचान दिलाई है।
भारत के लिए बड़ा मौका, लक्ष्य है निर्यात बढ़ाना
भारत के लिए यह एक शानदार अवसर साबित हो रहा है, क्योंकि सरकार ने 2029 तक अपने रक्षा निर्यात को दोगुना करने का लक्ष्य रखा है, जिससे यह 6 अरब डॉलर तक पहुंच सके। पिछले साल भारत ने 3.5 अरब डॉलर के हथियार निर्यात किए थे, हालांकि वह अपने लक्ष्य से कुछ पीछे रह गया था। फिर भी, पिछले दशक की तुलना में हथियारों की बिक्री में जबरदस्त वृद्धि हुई है। 2010 में भारत की हथियार बिक्री सिर्फ 230 मिलियन डॉलर थी, जबकि अब वह काफी ऊपर पहुंच चुका है।
निजी कंपनियों की भूमिका भी महत्वपूर्ण
155 मिमी गोलों के उत्पादन के लिए निजी भारतीय कंपनियां भी पूरी तरह से सक्रिय हो चुकी हैं। SMPP (Sonalika Group) जैसी कंपनियां इस बदलाव का हिस्सा बनकर इस नई मांग को पूरा करने में जुटी हैं। SMPP के सीईओ आशीष कंसल का कहना है, "वैश्विक रक्षा बाजार में तोपखाना गोला-बारूद की भारी मांग है, और हम इसे पूरा करने के लिए तैयार हैं।" भारतीय कंपनियों जैसे म्यूनिशन इंडिया और अदानी डिफेंस भी इस मौके का लाभ उठा रही हैं। रॉयटर्स के अनुसार, कुछ भारतीय कंपनियों को पहले ही 100 करोड़ रुपये से अधिक के तोप गोलों के ऑर्डर मिल चुके हैं।
यूक्रेन युद्ध से पश्चिमी देशों के हथियार संकट का प्रभाव
यूक्रेन युद्ध के कारण पश्चिमी देशों के हथियार भंडार तेजी से खत्म हो रहे हैं, और वहां तोप के गोलों का उत्पादन जारी तो है, लेकिन उनकी लागत बहुत अधिक है। वहीं, भारत कम कीमत पर उच्च गुणवत्ता वाले गोलों की आपूर्ति कर रहा है, जिससे उसे वैश्विक बाजार में एक प्रमुख स्थान मिल रहा है। पश्चिमी देशों की बढ़ती मांग और कम उत्पादन क्षमता ने भारतीय उत्पादों को आकर्षक बना दिया है, जिससे भारत के रक्षा निर्यात में भी उछाल आ रहा है।
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