सर्वे के दौरान यदि किसी ज़मीन का रिकॉर्ड अभी भी पूर्वजों के नाम पर है, तो उसे जीवित रैयत (वर्तमान उत्तराधिकारी) के नाम पर दर्ज किया जाएगा। लेकिन यदि पुश्तैनी ज़मीन का बंटवारा केवल मौखिक रूप से हुआ है और उसके समर्थन में कोई लिखित दस्तावेज़ मौजूद नहीं है, तो ऐसे मामलों में सरकार इसे मान्यता नहीं देगी।
केवल लिखित दस्तावेज़ होंगे वैध
राज्य सरकार के सर्वेक्षण अधिकारियों ने स्पष्ट किया है कि वे सिर्फ लिखित बंटवारे को ही कानूनी रूप से मान्य मानेंगे। ऐसे में जिन परिवारों ने आपसी सहमति से मौखिक रूप में ज़मीन का बंटवारा किया है, उन्हें इस सर्वेक्षण में संयुक्त रूप से मालिकाना हक के तहत जोड़ा जाएगा। यानी ऐसी ज़मीन को संयुक्त खतियान में दर्ज किया जाएगा, जिसमें सभी उत्तराधिकारियों को सह-मालिक माना जाएगा।
एक उदाहरण से समझें मामला
मान लीजिए कि किसी व्यक्ति के तीन बेटे हैं और पिता की मृत्यु के बाद तीनों बेटों ने ज़मीन का मौखिक बंटवारा कर लिया, लेकिन कोई लिखित समझौता या रजिस्टर्ड दस्तावेज़ नहीं बनवाया। ऐसी स्थिति में सर्वेक्षण अधिकारी इस मौखिक समझौते को अमान्य मानेंगे और ज़मीन को तीनों बेटों के संयुक्त नाम पर दर्ज करेंगे।
विवादों से बचने के लिए तुरंत करवाएं लिखित समझौता
विशेषज्ञों और प्रशासन की मानें तो ऐसे सभी मामलों में लोगों को जल्द से जल्द लिखित बंटवारे की प्रक्रिया पूरी करनी चाहिए। इससे न सिर्फ़ भविष्य के विवादों से बचा जा सकता है, बल्कि सरकारी रिकॉर्ड में भी ज़मीन का स्पष्ट स्वामित्व दर्ज हो सकेगा।
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