अब पूर्व मध्यमा (हाईस्कूल स्तर) में पढ़ाने वाले संस्कृत शिक्षकों को 12 हजार रुपये की जगह 20 हजार रुपये प्रतिमाह और उत्तर मध्यमा (इंटरमीडिएट स्तर) में पढ़ाने वालों को 15 हजार रुपये की जगह 25 हजार रुपये प्रतिमाह मानदेय मिलेगा।
शिक्षामित्रों को निराशा
हालांकि जहां एक तरफ संस्कृत शिक्षकों के चेहरे पर मुस्कान आई है, वहीं दूसरी ओर राज्य के हजारों शिक्षामित्रों को एक बार फिर से निराशा हाथ लगी है। लंबे समय से शिक्षामित्र अपने मानदेय में बढ़ोत्तरी की मांग कर रहे हैं, लेकिन अभी तक सरकार की ओर से इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
शिक्षामित्रों की भूमिका और संघर्ष
शिक्षामित्र पिछले दो दशकों से प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी बने हुए हैं। ग्रामीण और दूरदराज़ इलाकों में बच्चों को शिक्षित करने में इनकी भूमिका अहम रही है। लेकिन नियमित शिक्षकों की तुलना में इनका मानदेय काफी कम है और सामाजिक सुरक्षा के भी सीमित साधन उपलब्ध हैं।
वहीं, सरकार द्वारा संस्कृत शिक्षकों का मानदेय बढ़ाना निश्चित ही स्वागत योग्य कदम है, लेकिन इससे यह सवाल भी उठता है कि क्या प्राथमिक शिक्षा में वर्षों से योगदान दे रहे शिक्षामित्रों के साथ न्याय हो रहा है? यदि सरकार विशेष विषयों और वर्गों के शिक्षकों की आर्थिक स्थिति सुधार सकती है, तो शिक्षामित्रों के लिए भी नीति-निर्धारण में समान संवेदनशीलता और प्राथमिकता क्यों नहीं दिखती?
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