कब और कैसे हुआ ये घोटाला?
इस फर्जीवाड़े की जड़ें 1975-76 के दशक में जाती हैं, जब सरकारी जमीन को निजी लोगों के नाम पर अवैध तरीके से दर्ज करवा दिया गया। इस खेल में स्थानीय अधिकारियों और कर्मचारियों की मिलीभगत साफ नजर आती है। न तो इन जमाबंदियों से जुड़े कागजात मौजूद हैं, न ही कोई वैध प्रमाण जिससे इनकी पुष्टि की जा सके।
228 लोगों के नाम पर की गई थी जमाबंदी
जांच में सामने आया है कि कुल 349 एकड़ जमीन, जिसमें गंगा का किनारा, मंदिर की जमीन और अन्य सरकारी भूमि शामिल है, उसे 228 लोगों के नाम पर दर्ज कर दिया गया था। इससे न सिर्फ सरकार को भारी नुकसान हुआ, बल्कि धार्मिक और प्राकृतिक स्थलों पर भी कब्जा जमाने की कोशिश की गई।
केके पाठक की सख्ती से मचा हड़कंप
बिहार राजस्व परिषद के अध्यक्ष केके पाठक ने इस मामले को गंभीरता से लिया है और भोजपुर के जिला प्रशासन को तत्काल जांच और कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। उन्होंने साफ कहा कि इस तरह की जमाबंदी पूरी तरह से अवैध है और इसे तत्काल रद्द किया जाना चाहिए। उन्होंने भोजपुर के डीएम और एडीएम को निर्देशित किया है कि वे इस मामले की सुनवाई प्राथमिकता के आधार पर करें और अतिक्रमण हटाने की प्रक्रिया जल्द शुरू की जाए।
जिला प्रशासन की कार्रवाई शुरू
भोजपुर के डीएम ने बताया कि एडीएम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई जल्द की जाएगी। वहीं, बड़हरा अंचलाधिकारी ने अपनी रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि की है कि 349 एकड़ से ज्यादा सरकारी जमीन की फर्जी जमाबंदी की गई है और कोई वैध दस्तावेज नहीं मिला है। उन्होंने एडीएम से इस जमाबंदी को रद्द करने की सिफारिश की है।
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