शिक्षा विभाग के जिला कार्यक्रम पदाधिकारी (डीपीओ) संजय कुमार की ओर से टाउन थाना में रविवार को यह प्राथमिकी दर्ज कराई गई। इस केस में 13 संवेदक (वेंडर), 36 प्रधानाध्यापक, एक कनीय अभियंता एवं एक सहायक सह कार्यपालक अभियुक्त बनाए गए हैं। इन सभी पर बिना स्थलीय कार्य किए ही भुगतान की प्रक्रिया को पूरा करने का आरोप है।
डीपीओ ने बताया कि यह कार्रवाई 321 योजनाओं की जांच रिपोर्ट के आधार पर की गई है, जिसे लखीसराय के जिलाधिकारी मिथिलेश मिश्र के निर्देश पर गठित टीम ने अंजाम दिया था। जांच में खुलासा हुआ कि इनमें से 90 योजनाएं पूरी तरह से फर्जी निकलीं, जिनमें कोई भी वास्तविक काम नहीं हुआ था।
फिलहाल डीपीओ द्वारा दो अलग-अलग प्राथमिकी दर्ज कराई गई हैं। इनमें से एक स्थापना शाखा से संबंधित 29 योजनाएं हैं, जबकि दूसरी योजना लेखा शाखा से संबंधित 23 योजनाएं हैं। दोनों ही मामलों में सरकारी धन की हेराफेरी और नियमों की अवहेलना कर राशि के भुगतान का प्रयास किया गया।
शिकायत में यह भी उल्लेख किया गया है कि संबंधित संवेदकों और प्रधानाध्यापकों ने आपसी साठगांठ से योजनाओं के क्रियान्वयन के नाम पर सरकारी धन का दुरुपयोग किया। इस पूरे मामले के सामने आने के बाद शिक्षा विभाग में खलबली मच गई है। जिला प्रशासन ने संकेत दिया है कि जांच आगे भी जारी रहेगी और बाकी 38 फर्जी योजनाओं पर भी जल्द कार्रवाई की जाएगी।
प्रशासन सख्त, दोषियों पर गिरेगी गाज
डीएम मिथिलेश मिश्र ने स्पष्ट किया है कि दोषी चाहे कोई भी हो, उसे बख्शा नहीं जाएगा। उन्होंने कहा कि सरकारी योजनाओं में इस प्रकार की अनियमितता न केवल बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है, बल्कि यह जनता के विश्वास को भी ठेस पहुंचाता है।
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