मिलिट्री सैटेलाइट: अंतरिक्ष में भी फेल है पाकिस्तान

नई दिल्ली: 21वीं सदी में जहां अंतरिक्ष शक्ति को किसी भी देश की सामरिक क्षमता का आधार माना जा रहा है, वहीं इस क्षेत्र में पाकिस्तान की स्थिति बेहद निराशाजनक है। भारत, जो एक दशक पहले तक सिर्फ उपग्रह प्रक्षेपण की शुरुआत कर रहा था, आज न सिर्फ आत्मनिर्भर हो चुका है बल्कि अंतरिक्ष सुरक्षा के क्षेत्र में एक वैश्विक ताकत बन चुका है। वहीं पाकिस्तान, अब भी चीन के कंधे पर बंदूक रखकर अपनी रणनीति चला रहा हैं।

भारत के पास 9 सक्रिय मिलिट्री सैटेलाइट

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) आने वाले पांच वर्षों में 50 नए उपग्रह लॉन्च करने की योजना पर कार्य कर रहा है। इनमें से कई उपग्रह सैन्य और खुफिया उपयोग के लिए होंगे, जो सीमाओं की निगरानी, समुद्री गतिविधियों की ट्रैकिंग और रीयल-टाइम खुफिया जानकारी एकत्रित करने में सक्षम होंगे। इस समय भारत के पास 9 सक्रिय मिलिट्री सैटेलाइट्स हैं, जो दुश्मन की हर गतिविधि पर पैनी नजर बनाए हुए हैं।

पाकिस्तान के पास सक्रिय मिलिट्री सैटेलाइट नहीं

इसके ठीक विपरीत, पाकिस्तान के पास फिलहाल कोई भी सक्रिय सैन्य उपग्रह नहीं है। अब तक पाकिस्तान ने केवल कुछ सीमित क्षमताओं वाले नागरिक उपग्रह ही लॉन्च किए हैं, जिनमें से अधिकांश अपनी तकनीकी विफलताओं के कारण लंबे समय तक कार्यशील नहीं रह पाए। यह स्थिति पाकिस्तान की सैन्य और अंतरिक्ष नीति दोनों की कमजोरी दिखाती हैं।

चीन पर निर्भरता ही पाकिस्तान का एकमात्र विकल्प

पाकिस्तान की अंतरिक्ष निर्भरता पूरी तरह से चीन पर टिकी हुई है। वह जिलिन-1 जैसे चीनी उपग्रहों से इमेजरी डेटा खरीदता है, जो केवल सीमित रीयल-टाइम जानकारी प्रदान करते हैं और स्वतंत्र सैन्य ऑपरेशनों के लिए अपर्याप्त माने जाते हैं। इतना ही नहीं, पाकिस्तानी सेना अपने हथियारों और मिसाइलों की दिशा तय करने के लिए भी चीन के BeiDou Navigation Satellite System (BNS) का इस्तेमाल करती है। यानी पाकिस्तान की सैन्य अंतरिक्ष रणनीति पूरी तरह बाहरी तकनीक पर निर्भर है।

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