क्या है यह फैसला?
राज्य सरकार ने आदेश जारी कर विशेष भूमि सर्वेक्षण में यह सुनिश्चित करने को कहा है कि 20 दिसंबर 2004 के बाद हुए संपत्ति के बंटवारे में बेटियों का नाम अनिवार्य रूप से दर्ज हो। इसका मतलब है कि अगर किसी परिवार ने इस तिथि के बाद संपत्ति का बंटवारा किया है, तो उसमें बेटियों को भी बराबरी का हिस्सा मिलेगा और उनका नाम दस्तावेज़ों में दर्ज करना अनिवार्य होगा।
बेटियों के अधिकारों को मिलेगा कानूनी बल
इस फैसले के लागू होने से बेटियों को अब अपने अधिकारों के लिए लंबी कानूनी लड़ाइयां नहीं लड़नी होंगी। जमीन के दस्तावेजों में नाम दर्ज होने से उन्हें कानूनी रूप से उनका अधिकार स्वतः ही प्राप्त हो जाएगा। इससे ना केवल महिलाओं को आर्थिक सशक्तिकरण मिलेगा, बल्कि समाज में समानता की दिशा में भी बड़ा बदलाव आएगा।
क्या है हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 2005?
यह अधिनियम 2005 में लागू हुआ था, जिसके अनुसार बेटियों को भी बेटे की तरह पैतृक संपत्ति में समान अधिकार प्राप्त है। पहले यह अधिकार केवल बेटों को होता था, लेकिन इस कानून ने बेटियों को भी उनके हक से जोड़ दिया। बिहार जमीन सर्वे में इसे लागू कर दिया गया हैं।
इस फैसले में सरकार का उद्देश्य क्या हैं?
बिहार सरकार का उद्देश्य इस पहल से जमीनी स्तर पर लैंगिक समानता को बढ़ावा देना है। सरकार का मानना है कि अगर बेटियों को बचपन से यह महसूस कराया जाए कि वे भी परिवार की संपत्ति में बराबर की हिस्सेदार हैं, तो समाज में महिलाओं की स्थिति सशक्त होगी।

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