रॉकेट इंजन तकनीक: आत्मनिर्भर भारत की रीढ़
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने समय के साथ ठोस (Solid), द्रव (Liquid) और क्रायोजेनिक (Cryogenic) इंजन तकनीक में उल्लेखनीय प्रगति की है। भारत ने अपना पहला स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन — CE-7.5 — 2014 में सफलतापूर्वक लॉन्च किया था। इसके बाद CE-20 जैसे आधुनिक इंजनों ने GSLV Mk-III (अब LVM-3) को शक्ति दी, जिसने चंद्रयान-2 और चंद्रयान-3 जैसी ऐतिहासिक मिशनों को अंजाम तक पहुँचाया।
निजी क्षेत्र की भागीदारी: अंतरिक्ष उद्योग
अब ISRO के साथ-साथ निजी कंपनियाँ जैसे Skyroot Aerospace, Agnikul Cosmos और Bellatrix Aerospace भी रॉकेट इंजन बनाने में अग्रसर हैं। Skyroot ने हाल ही में 3D प्रिंटेड रॉकेट इंजन 'Dhawan-1' का सफल परीक्षण किया, जो न केवल भारतीय तकनीकी क्षमता को दर्शाता है बल्कि यह भी सिद्ध करता है कि भारत अब नवाचार की राह पर तेजी से आगे बढ़ रहा है।
वैज्ञानिकों और इंजीनियरों का योगदान
भारत की इस सफलता के पीछे देश के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की वर्षों की मेहनत, लगन और बुद्धिमत्ता है। बेहद सीमित संसाधनों में काम करते हुए ISRO ने हमेशा विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी तकनीक विकसित की है। अब ISRO का फोकस पुन: प्रयोज्य लॉन्च वाहन (Reusable Launch Vehicle) पर हैं। इसके अलावा भारत अंतरिक्ष में दीर्घकालिक उपस्थिति के लिए भी योजना बना रहा है, जिसमें सतत और शक्तिशाली इंजन प्रणाली का विकास अहम भूमिका निभाएगा।
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