अमेरिकी टैरिफ और दबाव के बीच भारत की ऊर्जा नीति
हाल के महीनों में अमेरिका ने भारत पर रूसी तेल आयात कम करने के लिए राजनीतिक और आर्थिक दबाव बढ़ाया है। इसके तहत अमेरिकी प्रशासन ने भारतीय निर्यात पर लगभग 25% अतिरिक्त शुल्क लगाया, जिससे कुल टैरिफ बढ़कर 50% के स्तर पर पहुंच गया।
यह भारत के लिए एक कड़ा आर्थिक झटका था, लेकिन इसके बावजूद नई दिल्ली ने ऊर्जा सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए अपनी रणनीति में बदलाव नहीं किया। भारत का तर्क साफ है ऊर्जा की बढ़ती घरेलू मांग को पूरा करना किसी भी देश की मूलभूत आवश्यकता है, और इसके लिए वह विविध स्रोतों से आयात करने का अधिकार रखता है।
रूस से तेल आयात छह महीने के उच्चतम स्तर पर
नए शिप-ट्रैकिंगडेटा के अनुसार दिसंबर में भारत का रूसी तेल आयात लगभग 1.85 मिलियन बैरल प्रति दिन (mbd) तक पहुंचने वाला है, जो पिछले महीने की तुलना में और अधिक है। यह लगातार तीसरा महीना है जब रूस से आयात बढ़ रहा है।
अक्टूबर: 1.48 mbd
नवंबर: 1.83 mbd
दिसंबर: 1.85 mbd (संभावित)
यह स्तर जून 2025 के बाद सबसे ऊंचा माना जा रहा है, जब भारत ने एक दिन में 2.10 mbd तेल खरीदा था। इस वृद्धि से साफ है कि भारत ऊर्जा बाज़ार में अपनी स्थिति और प्राथमिकताओं को लेकर आश्वस्त है।
रूस पर पश्चिमी प्रतिबंध बेअसर?
वैश्विक ऊर्जा विशेषज्ञों का मानना है कि रूस पर लगाए गए पश्चिमी प्रतिबंधों ने उसके तेल निर्यात को अपेक्षित रूप से प्रभावित नहीं किया है। रूस लंबे समय से प्रतिबंधों के बीच व्यापार संचालित करने में माहिर रहा है और आज भी उसका कच्चा तेल दुनिया के अनेक देशों तक पहुंच रहा है।
उद्योग विशेषज्ञों के अनुसार, रूस ने वैकल्पिक मार्ग और भुगतान प्रणाली विकसित कर ली हैं। एशियाई देशों, खासकर भारत और चीन, ने रूस के लिए नए स्थायी बाज़ार तैयार कर दिए हैं। इस साझेदारी में पारस्परिक लाभ दोनों देशों को मजबूती देता है। भारत को सस्ता तेल मिलता है, जबकि रूस को स्थिर और बड़ा बाज़ार।
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