हर जिले में बनेगी विशेष कमेटी
इस योजना के क्रियान्वयन के लिए सरकार ने जिलााधिकारी (DM) की अध्यक्षता में एक विशेष समिति गठित करने का निर्णय लिया है। इस कमेटी में शामिल होंगे एसपी (ट्रैफिक) या डीएसपी (ट्रैफिक), सिविल सर्जन, जिला परिवहन पदाधिकारी (DTO), पथ निर्माण विभाग के कार्यपालक अभियंता। यह टीम मिलकर हाईवे के उन हिस्सों का सर्वे करेगी जहाँ दुर्घटनाएँ अधिक होती हैं। सर्वे रिपोर्ट के आधार पर ट्रॉमा सेंटर की लोकेशन तय की जाएगी और चयनित भूमि की रिपोर्ट विभाग को भेजी जाएगी। इसके बाद निर्माण कार्य शुरू होगा।
हाईवे पर क्यों बनाए जाएंगे ट्रॉमा सेंटर?
अधिकांश गंभीर सड़क हादसे हाईवे पर ही होते हैं, जबकि बड़े अस्पताल शहरों के बीचों-बीच स्थित होते हैं। ऐसे में एंबुलेंस को पहुँचने में कई बार देर हो जाती है, और मरीज 'गोल्डन आवर' में इलाज नहीं पा पाते। सरकार का मानना है कि यदि ट्रॉमा सेंटर सीधे हाईवे से जुड़े हों, तो एंबुलेंस 5–10 मिनट में पहुंच सकेगी, जिससे मरीज की जान बचने की संभावना कई गुना बढ़ जाएगी।
निजी अस्पतालों में भी बनेंगे ट्रॉमा सेंटर
सरकार ने यह भी निर्णय लिया है कि प्रत्येक जिले में दो चुनिंदा प्राइवेट अस्पतालों में भी ट्रॉमा सेंटर की सुविधा तैयार की जाएगी। यह कदम स्वास्थ्य ढांचे को और मजबूत करेगा तथा आपात स्थितियों में विकल्प बढ़ाएगा।
प्राइवेट ट्रॉमा सेंटर में मिलेगा फ्री इलाज
हाईवे पर हादसे का शिकार होने वाले मरीजों को निजी ट्रॉमा सेंटरों में भी पूरी तरह मुफ्त उपचार दिया जाएगा। इलाज का पूरा खर्च राज्य सरकार वहन करेगी। भुगतान के लिए सड़क सुरक्षा फंड का उपयोग किया जाएगा। यह सुविधा विशेष रूप से गरीब और सामान्य वर्ग के उन परिवारों के लिए वरदान साबित होगी, जिन्हें समय पर और गुणवत्तापूर्ण इलाज नहीं मिल पाता।
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