क्यों अहम है यह योजना?
रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट आधुनिक तकनीक की रीढ़ माने जाते हैं। इलेक्ट्रिक वाहन, पवन ऊर्जा संयंत्र, एयरोस्पेस, मोबाइल फोन और हाईटेक इलेक्ट्रॉनिक्स, इन सभी में इन शक्तिशाली मैग्नेट्स की अहम भूमिका होती है। अब तक भारत इन जरूरी घटकों के लिए बड़े पैमाने पर आयात पर निर्भर था, जिसमें चीन की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा रही है। नई योजना के बाद यह निर्भरता धीरे-धीरे खत्म होने की उम्मीद है।
घरेलू उत्पादन को मिलेगा बढ़ावा
भारी उद्योग मंत्रालय के अनुसार, इस योजना का फोकस सिनटर्ड नियोडिमियम-आयरन-बोरॉन (NdFeB) मैग्नेट के घरेलू उत्पादन पर है। सरकार का लक्ष्य देश में 6,000 एमटीपीए उत्पादन क्षमता विकसित करना है, जिससे भारत वैश्विक सप्लाई चेन में मजबूत खिलाड़ी बन सके।
कंपनियों को कैसे मिलेगा लाभ?
इस योजना को पारदर्शी बनाने के लिए ग्लोबल टेंडर इंक्वायरी (GTE) के जरिए आवेदन आमंत्रित किए जाएंगे। इसके तहत पांच कंपनियों का चयन होगा। प्रत्येक चयनित कंपनी को 600 से 1,200 एमटीपीए तक की उत्पादन क्षमता दी जाएगी। कंपनियों को कैपिटल सब्सिडी के जरिए प्लांट लगाने में मदद मिलेगी। इसके अलावा सेल्स लिंक्ड इंसेंटिव के तहत बिक्री पर प्रोत्साहन राशि भी दी जाएगी। खास बात यह है कि सबसे कम बोली लगाने वाली तीन कंपनियों को आईआरईएल (इंडिया) लिमिटेड से कच्चे माल की सुनिश्चित आपूर्ति मिलेगी, जिससे उत्पादन में स्थिरता बनी रहेगी।
संसाधन थे, लेकिन कड़ी टूटी हुई थी
भारत के पास रेयर अर्थ का दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा भंडार मौजूद है। खनन और ऑक्साइड उत्पादन की क्षमता होने के बावजूद देश में मेटल और मैग्नेट निर्माण की औद्योगिक क्षमता का अभाव था। इसी वजह से भारत को विदेशी कंपनियों पर निर्भर रहना पड़ता था। नई योजना इस अधूरी कड़ी को जोड़ते हुए भारत को कच्चे माल से फिनिश्ड प्रोडक्ट तक की पूरी यात्रा में सक्षम बनाएगी।
इस फैसले के बाद भारत न केवल चीन की मोनोपोली को चुनौती देगा, बल्कि अमेरिका और अन्य विकसित देशों के लिए भी एक वैकल्पिक सप्लायर के रूप में उभरेगा। यह कदम ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ की सोच को नई ऊंचाई देने वाला साबित हो सकता है।

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