ट्रंप ने कराई आर्मेनिया-अजरबैजान में शांति, नोबेल की मांग तेज

न्यूज डेस्क। शुक्रवार का दिन इतिहास में दर्ज हो गया जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आर्मेनिया और अजरबैजान के नेताओं को एक मंच पर लाकर 35 साल पुराने संघर्ष का अंत करवा दिया। दशकों से चले आ रहे दक्षिण कॉकसस के इस विवाद को सुलझाना अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए एक कठिन चुनौती बना हुआ था, लेकिन ट्रंप की कूटनीतिक सक्रियता और व्यक्तिगत हस्तक्षेप ने इस असंभव को संभव बना दिया।

शांति समझौते का बड़ा असर

समझौते के तहत न सिर्फ दोनों देशों के बीच युद्धविराम हुआ, बल्कि एक नए युग की शुरुआत का संकेत भी मिला। सबसे उल्लेखनीय पहलू यह है कि अमेरिका को आर्मेनिया की जमीन से होकर एक विशेष ट्रांजिट कॉरिडोर विकसित करने का दीर्घकालिक अधिकार मिल गया है। इस कॉरिडोर को TRIPP, Trump Route for International Peace and Prosperity नाम दिया गया है, जो राष्ट्रपति ट्रंप की शांति स्थापना में भूमिका का प्रतीक होगा।

यह कॉरिडोर न सिर्फ अजरबैजान को उसके अलग-थलग नखचिवान क्षेत्र से जोड़ेगा, बल्कि क्षेत्रीय व्यापार, ऊर्जा आपूर्ति और डिजिटल कनेक्टिविटी के लिए भी एक नया रास्ता खोलेगा। रेल मार्ग, तेल और गैस पाइपलाइन के साथ-साथ फाइबर ऑप्टिक लाइनें इस 43 किलोमीटर लंबे रास्ते का हिस्सा होंगी। इसे अमेरिकी निजी कंपनियां विकसित करेंगी, और अमेरिका को इस पर विशेष नियंत्रण प्राप्त होगा।

व्हाइट हाउस में हुआ ऐतिहासिक समझौता

इस समझौते को अंतिम रूप व्हाइट हाउस में दिया गया, जहां ट्रंप के साथ आर्मेनिया के प्रधानमंत्री निकोल पशिनयान और अजरबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव मौजूद थे। एक संयुक्त बयान में तीनों नेताओं ने इस डील को "दक्षिण कॉकसस में स्थायी शांति की दिशा में निर्णायक कदम" बताया।

नोबेल शांति पुरस्कार की मांग

इस समझौते के बाद दोनों देशों की ओर से ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार देने की सार्वजनिक मांग उठी है। यह पहला मौका नहीं है जब ट्रंप को ‘ग्लोबल पीस ब्रोकर्स’ की भूमिका में देखा गया हो। हाल ही में कंबोडिया और थाईलैंड के बीच संघर्षविराम में भी उन्होंने निर्णायक भूमिका निभाई थी  यह कहते हुए कि यदि युद्ध नहीं रुका, तो अमेरिका दोनों देशों से व्यापारिक संबंध निलंबित कर देगा।

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