कैसे हुआ फर्जीवाड़े का खुलासा?
इस घोटाले का पर्दाफाश वर्ष 2018 में हुआ, जब तत्कालीन जिलाधिकारी प्रकाश बिंदु ने समाज में बढ़ती शिकायतों को संज्ञान में लेते हुए बीएसए कार्यालय का औचक निरीक्षण किया। निरीक्षण के दौरान अंबेडकर विद्यालयों में नियुक्त 74 सहायक अध्यापकों में से केवल 32 की नियुक्ति से संबंधित फाइलें ही उपलब्ध थीं। इससे मामला संदिग्ध हो गया और डीएम ने तत्काल प्रभाव से जांच का आदेश दे दिया। डीएम द्वारा गठित पांच सदस्यीय जांच समिति ने मामले की तह तक जाकर पाया कि कई नियुक्तियाँ फर्जी प्रमाणपत्रों के आधार पर की गई थीं। इसके बाद संबंधित फाइलों को ट्रेजरी के लॉकर में सुरक्षित रखते हुए एफआईआर दर्ज कराई गई।
क्या कहती है जांच रिपोर्ट?
नियम 51 के तहत समाज कल्याण विभाग द्वारा की गई जांच में पुष्टि हुई कि 42 शिक्षक फर्जी दस्तावेजों के आधार पर नौकरी कर रहे थे। जिला समाज कल्याण अधिकारी रश्मि मिश्रा ने इन सभी शिक्षकों के खिलाफ मऊ की शहर कोतवाली में मुकदमा दर्ज कराया। यही नहीं, इस प्रक्रिया में शामिल रहे 20 स्कूल प्रबंधक, तीन तत्कालीन जिला समाज कल्याण अधिकारी—बलदेव त्रिपाठी, जितेंद्र मोहन शुक्ल और विमला राय—को भी आरोपी बनाया गया है।
नामजद शिक्षकों की सूची
जिन 42 शिक्षकों पर मुकदमा दर्ज हुआ है, उनमें कुलदीप नारायण, गौरव कुमार पांडेय, राजमती यादव, अभिषेक कुमार दुबे, राकेश दीक्षित, वंदना कौशल, सुरेंद्र कुमार भारती, रजनीश उपाध्याय, मनोज राय, अश्वनी रंजन, शमा, उपमा गौतम, कमरुद्दीन, शशिकांत सिंह, सलील दुबे, अर्चना भारती, मोनिका जायसवाल, ओमप्रकाश भारती और रेनू यादव जैसे नाम शामिल हैं।
प्रबंधक और अधिकारी भी घेरे में
नियुक्तियों में गड़बड़ी के लिए सिर्फ शिक्षक ही नहीं, बल्कि प्रक्रिया से जुड़े अन्य लोग भी जिम्मेदार पाए गए। जिन स्कूल प्रबंधकों पर मुकदमा दर्ज हुआ है उनमें धनंजय कुमार, सरोजनाथ पांडेय, शेख सल्लू, लछीराम, सुधाकर शर्मा, रामअवध राव जैसे लोग शामिल हैं। इसके अलावा बेसिक शिक्षा विभाग के तत्कालीन खंड शिक्षा अधिकारी, सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारी और समाज कल्याण विभाग के तीन पर्यवेक्षकों पर भी केस दर्ज हुआ है।
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