नियम क्या कहता है?
सरकार के नियमों के मुताबिक, जब भी किसी व्यक्ति द्वारा 30 लाख रुपये या उससे अधिक मूल्य की संपत्ति की रजिस्ट्री की जाती है, तो खरीदार का पैन नंबर देना अनिवार्य होता है। अगर किसी के पास पैन नहीं है, तो उसे फॉर्म-60 भरकर देना होता है। यह जानकारी संबंधित निबंधन कार्यालयों को आयकर विभाग को रिपोर्ट करनी होती है, ताकि वित्तीय लेन-देन में पारदर्शिता बनी रहे और काले धन के इस्तेमाल पर रोक लग सके।
कहां हुई चूक?
आयकर विभाग के मुताबिक, बिहार के अधिकांश निबंधन कार्यालयों ने या तो ये जानकारी समय पर नहीं दी या दी भी तो अधूरी या गलत। कई मामलों में खरीदार के पैन नंबर गलत मिले और कहीं-कहीं फॉर्म-60 का कोई रिकॉर्ड ही नहीं था। पटना और गया के निबंधन कार्यालयों में इस बाबत हाल ही में सर्वेक्षण किया गया, जिसमें वर्षों पुरानी कई रजिस्ट्रियों की जांच की गई।
क्या मिला सर्वे में?
सर्वे के दौरान अधिकारियों को 2021-22 से 2023-24 के बीच के हजारों दस्तावेज ऐसे मिले, जिनमें ज़मीन का मूल्य 30 लाख से अधिक था, लेकिन उनसे जुड़ी पैन और फॉर्म-60 जैसी जरूरी जानकारियां या तो नदारद थीं या फिर त्रुटिपूर्ण थीं। आयकर विभाग की अन्वेषण इकाई ने इन सभी दस्तावेजों को जब्त कर लिया है और अब इनकी गहन जांच की जाएगी।
क्यों जरूरी है पैन नंबर?
पैन नंबर आयकर विभाग के लिए व्यक्ति की वित्तीय गतिविधियों का एक महत्वपूर्ण रिकॉर्ड होता है। जमीन-जायदाद जैसी बड़ी खरीद में इसकी मदद से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि लेन-देन काले धन के जरिए तो नहीं हो रहा है। पैन की अनिवार्यता से टैक्स चोरी पर रोक लगाई जा सकती है और एक पारदर्शी व्यवस्था बनाई जा सकती है।
0 comments:
Post a Comment