भारत-रूस के बीच 5 गुना बढ़ा व्यापार, अमेरिका को टेंशन!

नई दिल्ली। भारत और रूस के संबंध ऐतिहासिक रूप से घनिष्ठ और बहुआयामी रहे हैं। शीत युद्ध के समय से ही दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी, रक्षा सहयोग और आर्थिक आदान-प्रदान मजबूत रहे हैं। हाल के वर्षों में, विशेषकर वैश्विक भू-राजनीतिक परिदृश्य में भारी बदलावों के बीच, यह रिश्ता और भी अधिक गहराता दिख रहा है। भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर की रूस यात्रा और द्विपक्षीय व्यापार में आई पांच गुना वृद्धि इस बदलते समीकरण का प्रमाण है।

व्यापारिक संबंधों में ऐतिहासिक उछाल

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने मॉस्को में आयोजित भारत-रूस अंतर-सरकारी आयोग (IRIGC-TEC) की 26वीं बैठक में हिस्सा लेते हुए बताया कि भारत-रूस के बीच वस्तुओं का व्यापार 2021 में 13 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2024-25 में 68 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। यह वृद्धि न केवल आर्थिक दृष्टि से उल्लेखनीय है, बल्कि यह दर्शाती है कि दोनों देश एक-दूसरे की आवश्यकता को बेहतर तरीके से समझने लगे हैं। रूस से भारत को विशेष रूप से ऊर्जा संसाधन जैसे कच्चा तेल और गैस का निर्यात बढ़ा है, जो भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए बेहद अहम है।

व्यापार असंतुलन: एक नई चुनौती

हालांकि इस तीव्र व्यापार वृद्धि के साथ एक बड़ा असंतुलन भी सामने आया है। जयशंकर ने स्पष्ट किया कि व्यापार घाटा, जो पहले 6.6 अरब डॉलर था, अब बढ़कर लगभग 59 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। इसका मतलब है कि भारत रूस से कहीं अधिक आयात कर रहा है, जबकि निर्यात अपेक्षाकृत कम है। यह असंतुलन दीर्घकालिक रूप से आर्थिक दबाव का कारण बन सकता है, इसलिए जयशंकर ने इसे तत्काल सुलझाने की आवश्यकता पर बल दिया।

अमेरिका-भारत तनाव और रूस की भूमिका

जयशंकर की यह यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब भारत और अमेरिका के बीच रूस से तेल खरीद को लेकर तनाव बना हुआ है। अमेरिका चाहता है कि रूस पर लगे प्रतिबंधों का सभी देश पालन करें, जबकि भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों और रणनीतिक हितों को देखते हुए रूस से सस्ता तेल खरीदता रहा है। इस स्थिति में रूस के साथ व्यापार बढ़ाना भारत के लिए एक स्पष्ट संकेत है कि वह अपनी स्वतंत्र विदेश नीति और रणनीतिक स्वायत्तता को प्राथमिकता देता है।

रचनात्मक और अभिनव दृष्टिकोण की आवश्यकता

जयशंकर ने मॉस्को में रूस के प्रथम उप प्रधानमंत्री डेनिस मंटुरोव से मुलाकात के दौरान इस बात पर जोर दिया कि दोनों देशों को वर्तमान जटिल वैश्विक चुनौतियों का सामना करने के लिए रचनात्मक और अभिनव दृष्टिकोण अपनाना होगा। यह बयान इस बात का संकेत है कि भारत अब केवल पारंपरिक सहयोग तक सीमित नहीं रहना चाहता, बल्कि उन्नत तकनीक, विनिर्माण, डिजिटल अर्थव्यवस्था और संस्कृति जैसे क्षेत्रों में भी रूस के साथ भागीदारी बढ़ाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।

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