बालवाटिका की पृष्ठभूमि
प्रदेश में कम नामांकन वाले विद्यालयों को आपस में मर्ज (विलय) करके एक समेकित मॉडल तैयार किया गया है। इस प्रक्रिया में 5000 से अधिक विद्यालयों के भवन खाली हो गए, जिनका उपयोग अब बालवाटिकाओं के संचालन के लिए किया जा रहा है। इन बालवाटिकाओं का उद्देश्य नन्हे बच्चों को औपचारिक स्कूली शिक्षा से पहले एक सुसंगठित, समृद्ध और खेल आधारित शैक्षिक वातावरण देना है।
शिक्षकों की तैनाती को लेकर भ्रम
इस नई व्यवस्था में सबसे अधिक भ्रम शिक्षकों की तैनाती को लेकर पैदा हुआ है। मर्जर किए गए विद्यालयों के कुछ शिक्षक यह मान रहे थे कि उन्हें पुनः अपने पुराने विद्यालय (जो अब बालवाटिका के रूप में उपयोग हो रहा है) में भेजा जाएगा। लेकिन महानिदेशक स्कूल शिक्षा कंचन वर्मा ने स्पष्ट किया है कि ऐसा कोई आदेश नहीं है।
दरअसल, जब तक बालवाटिकाओं में बच्चों को पढ़ाने के लिए ईसीसीई एजुकेटर की तैनाती नहीं हो जाती, तब तक इन केंद्रों पर पूर्व में तैनात एक शिक्षक या शिक्षामित्र को समन्वयक की भूमिका दी गई है। इनका कार्य शिक्षण के साथ-साथ आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के साथ मिलकर बच्चों की देखरेख, शिक्षण सामग्री की व्यवस्था, और बालवाटिका की अन्य आवश्यक गतिविधियों का संचालन करना है।
ECCE एजुकेटर की नियुक्ति प्रक्रिया
राज्य के कई जिलों, जैसे लखनऊ आदि में ECCE एजुकेटर की नियुक्ति हो चुकी है, और बाकी जिलों में प्रक्रिया जारी है। सरकार का उद्देश्य यह है कि हर बालवाटिका में एक प्रशिक्षित शिक्षक तैनात हो, जो बच्चों को खेल-आधारित एवं गतिविधि-केंद्रित शिक्षा प्रदान कर सके। इससे बच्चों के बौद्धिक, सामाजिक और शारीरिक विकास की नींव मजबूत होगी।
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