ग्लोबल इकॉनमी: चीन पिछड़ा, यूरोप आगे; भारत की तेज़ छलांग

नई दिल्ली। विश्व अर्थव्यवस्था एक बार फिर संतुलन की नई स्थिति में प्रवेश कर चुकी है। ताजा आंकड़ों के अनुसार, यूरोपीय संघ की संयुक्त GDP अब चीन से आगे निकल गई है। जहां चीन की GDP $19.23 ट्रिलियन पर है, वहीं यूरोपीय यूनियन की संयुक्त अर्थव्यवस्था $19.99 ट्रिलियन तक पहुंच चुकी है। यह बदलाव खास तौर पर इसलिए अहम है क्योंकि ब्रेक्ज़िट के बाद यह पहला मौका है जब चीन की अर्थव्यवस्था यूरोपीय यूनियन से पिछड़ गई है।

चीन की रफ्तार थमी, पर दौड़ अभी बाकी है

पिछले साढ़े तीन दशकों में चीन ने जिस तेज़ी से विकास किया है, वह अभूतपूर्व रहा है। 1990 में वैश्विक GDP में उसकी हिस्सेदारी महज 1.8% थी, जो अब 19.8% तक पहुंच गई है। इतने कम समय में किसी एक देश का इतना उभार दुनिया के आर्थिक इतिहास में कम ही देखा गया है। लेकिन अब जब यूरोपीय संघ ने उसे पीछे छोड़ा है, तो यह संकेत है कि चीन की विकास गति थोड़ी धीमी पड़ रही है। हालांकि, यह भी ध्यान देने वाली बात है कि चीन अब भी अमेरिका के बाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना हुआ है।

यूरोप की वापसी: विविधता में शक्ति

यूरोपीय यूनियन की यह सफलता सामूहिक ताकत का प्रमाण है। जर्मनी की $4.3 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था सबसे आगे है, जिसके बाद फ्रांस, इटली, स्पेन और नीदरलैंड जैसे देशों का योगदान महत्वपूर्ण है। आर्थिक दृष्टिकोण से विविधताओं से भरे इस संघ ने समन्वय और संरचनात्मक सुधारों के ज़रिए चीन जैसी एकीकृत अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़ना एक बड़ी रणनीतिक उपलब्धि है।

अमेरिका: स्थिरता की मिसाल

अगर किसी देश ने आर्थिक संतुलन में निरंतरता दिखाई है, तो वह है अमेरिका। 1990 से लेकर आज तक, अमेरिका की वैश्विक GDP में हिस्सेदारी लगभग 26% पर स्थिर बनी हुई है। इस स्थिरता का मतलब है कि अमेरिका न केवल वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में अपना प्रभुत्व बनाए रखने में सफल रहा है, बल्कि उसने नई आर्थिक शक्तियों के उभार के बावजूद अपना संतुलन खोया नहीं है।

भारत: उभरती हुई शक्ति

भारत की अर्थव्यवस्था की एक बड़ी कहानी है। 1990 में विश्व अर्थव्यवस्था में भारत की हिस्सेदारी 3.4% थी, जो अब बढ़कर 8.5% हो गई है। यह वृद्धि केवल संख्याओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह संकेत देती है कि भारत अब नीतिगत स्थिरता, डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन, और वैश्विक निवेशकों के लिए एक आकर्षक बाजार के रूप में उभर रहा है।

गिरते दिग्गज: जापान, फ्रांस, जर्मनी और UK

जहां कुछ देश आगे बढ़ रहे हैं, वहीं कुछ पुराने आर्थिक दिग्गज अपने प्रभाव को बनाए रखने में असफल रहे हैं। 1990 में जापान, फ्रांस, जर्मनी, इटली और यूनाइटेड किंगडम की सामूहिक हिस्सेदारी 37% थी, जो अब गिरकर 16% रह गई है। यह गिरावट न केवल वैश्विक व्यापार में बदलाव का संकेत है, बल्कि जनसांख्यिकी, नवाचार की गति और निवेश के झुकाव में बदलाव को भी दर्शाती है।

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