अमेरिका की नई टैरिफ नीति और उसका असर
हालिया रिपोर्टों के अनुसार, अमेरिका भारत से आयात होने वाले उत्पादों पर टैरिफ को मौजूदा 25% से बढ़ाकर 50% तक ले जाने की योजना बना रहा है। इसका दुष्परिणाम भारत जैसे साझेदार देशों पर पड़ रहे हैं। भारत के कुल निर्यात में अमेरिका की हिस्सेदारी 20% है, जबकि तमिलनाडु के मामले में यह आंकड़ा 31% तक पहुंच जाता है। इस आधार पर साफ है कि टैरिफ में कोई भी बढ़ोतरी तमिलनाडु के निर्यातकों को सीधे तौर पर प्रभावित करेगी।
किन क्षेत्रों पर पड़ेगा सबसे ज्यादा असर?
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजे गए पत्र में चिंता जताई है कि यह टैरिफ वृद्धि तमिलनाडु के श्रम-प्रधान उद्योगों को गहरा झटका दे सकती है। राज्य का वस्त्र उद्योग, जो भारत के कुल वस्त्र निर्यात का 28% हिस्सा बनाता है, विशेष रूप से संकट में है। इस क्षेत्र में लगभग 75 लाख लोग कार्यरत हैं, और अनुमान है कि टैरिफ वृद्धि के चलते करीब 30 लाख नौकरियां खतरे में पड़ सकती हैं।
आर्थिक और सामाजिक असर
निर्यात पर बढ़ता बोझ राज्य की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ लाखों परिवारों की आजीविका पर असर डालेगा। विदेशी बाजारों में तमिलनाडु के उत्पाद कम प्रतिस्पर्धी बनेंगे, जिससे खरीददार अन्य विकल्पों की तलाश कर सकते हैं। इससे उत्पादन घटेगा, ऑर्डर रद्द होंगे और नौकरियों में कटौती की स्थिति बन सकती है।
राज्य की चिंता, राष्ट्रहित में समर्थन
मुख्यमंत्री स्टालिन ने यह भी स्पष्ट किया कि वे अमेरिका के साथ संतुलित व्यापार संबंधों के समर्थन में हैं और केंद्र सरकार की कूटनीतिक पहल का सम्मान करते हैं। लेकिन उन्होंने यह भी जोर देकर कहा कि तमिलनाडु की आर्थिक संरचना अमेरिका पर अत्यधिक निर्भर है, और इसीलिए केंद्र को राज्य की विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए कदम उठाने होंगे
स्टालिन की केंद्र से प्रमुख मांगें
विशेष वित्तीय राहत पैकेज: कोविड काल की तर्ज पर, कर्ज की मूलधन अदायगी पर रोक दी जाए ताकि उद्योगों को कुछ राहत मिल सके।
GST ढांचे में सुधार: खासकर मानव-निर्मित फाइबर उद्योग के लिए इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर को खत्म करके समान दर (5%) लागू की जाए।
कपास पर आयात शुल्क हटाना: जिससे वस्त्र उद्योग को सस्ता कच्चा माल मिल सके और वह वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बना रहे।
ब्याज अनुदान योजना: प्रभावित निर्यातकों को राहत देने के लिए विशेष ब्याज सब्सिडी दी जाए।
एफटीए और द्विपक्षीय समझौते: अमेरिकी बाजार जैसे उच्च शुल्क वाले बाजारों में जोखिम को कम करने के लिए वैकल्पिक व्यापार समझौतों पर तेजी से काम हो।।
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