भारत बनाएगा नई पीढ़ी की 'S5' पनडुब्बियां, चीन सन्न!

नई दिल्ली। भारत अब अपनी सामरिक शक्ति को एक नए मुकाम पर ले जाने की दिशा में अग्रसर है। देश अगली पीढ़ी की S5 श्रेणी की परमाणु पनडुब्बियों (SSBNs) के निर्माण की तैयारी में जुट चुका है, जो हिंद महासागर में भारत की रणनीतिक मौजूदगी को और अधिक मजबूत बनाएंगी। यह कदम न केवल भारत की रक्षा क्षमता को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगा, बल्कि उसके परमाणु त्रिकोण की स्थिरता और प्रभावशीलता को भी अभूतपूर्व रूप से बढ़ाएगा।

S4 से S5 तक का विकास

वर्तमान में भारतीय नौसेना की सबसे उन्नत SSBN पनडुब्बियां INS अरिहंत और S4 क्लास की श्रेणी से संबंधित हैं। हालांकि, इनमें सीमित मिसाइल ले जाने की क्षमता और कम विस्थापन जैसी कुछ रणनीतिक सीमाएं हैं। S5 श्रेणी इसी अंतर को भरने के उद्देश्य से विकसित की जा रही है। S5 पनडुब्बियां आकार, क्षमता और तकनीकी विशेषताओं में पहले की श्रृंखलाओं से कहीं अधिक उन्नत होंगी। इनका संभावित विस्थापन 12,000 से 13,500 टन के बीच होगा जो कि S4 श्रृंखला की तुलना में बड़ा सुधार है।

BARC द्वारा विकसित पावर प्लांट

इन पनडुब्बियों को भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) द्वारा विकसित 190 मेगावाट के न्यूक्लियर रिएक्टर से शक्ति मिलेगी। यह रिएक्टर न केवल लंबी दूरी की गश्त के लिए आवश्यक ऊर्जा प्रदान करेगा, बल्कि पनडुब्बी को लंबे समय तक पानी के भीतर रहने में भी सक्षम बनाएगा। इससे भारत को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बनाए रखने और सतत निगरानी करने की ताकत मिलेगी।

मिसाइल पेलोड: भारी मारक क्षमता

S5 पनडुब्बियों की सबसे बड़ी ताकत उनकी मल्टी-मिसाइल लॉन्च क्षमता होगी। प्रत्येक पनडुब्बी में 12 से 16 बैलिस्टिक मिसाइलें ले जाने की क्षमता होगी, जिनमें K-5 और K-6 जैसे अत्याधुनिक पनडुब्बी से प्रक्षेपित बैलिस्टिक मिसाइलें (SLBMs) शामिल होंगी। विशेष रूप से K-6 मिसाइलें MIRV तकनीक से लैस होंगी, जिससे एक ही मिसाइल कई लक्ष्यों को अलग-अलग दिशा में और अलग-अलग दूरी पर सटीक रूप से भेद सकती है। यह भारत की द्वितीय-प्रहार क्षमता को एक नई मजबूती देगा।

रणनीतिक महत्व और भविष्य की दिशा

S5 कार्यक्रम केवल एक तकनीकी उन्नयन नहीं है, बल्कि यह भारत की रणनीतिक स्वायत्तता और निवारक सिद्धांत की पुष्टि भी करता है। जैसे-जैसे क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा परिदृश्य जटिल होते जा रहे हैं, भारत को ऐसे प्लेटफॉर्म की आवश्यकता है जो विश्वसनीय और लचीला निवारण प्रदान कर सकें। इन पनडुब्बियों का निर्माण वर्ष 2027 के आसपास शुरू होने की उम्मीद है। इसका मतलब है कि भारत अगले दशक में समुद्री शक्ति के क्षेत्र में एक स्थायी परमाणु उपस्थिति की ओर कदम बढ़ा रहा है।

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