टी-14 आर्मटा: आधुनिक तकनीक का परिचायक
टी-14 आर्मटा टैंक अपनी अगली पीढ़ी की क्षमताओं के लिए जाना जाता है। यह एक स्टील्थ तकनीक से लैस नेक्स्ट जेनरेशन प्लेटफॉर्म है, जिसमें तीन सदस्यीय क्रू बैठते हैं। खास बात यह है कि यह टैंक पूरी तरह मानवरहित ऑपरेशन के लिए सक्षम है, यानि इसमें चालक दल के बिना भी युद्ध संचालन संभव है। इसके अलावा, इसके कवच और सुरक्षा प्रणालियाँ सैनिकों को घातक हमलों से बचाने में मदद करती हैं।
मेक इन इंडिया के तहत उत्पादन का अवसर
रूस ने न केवल इस टैंक को खरीदने का ऑफर दिया है, बल्कि इसका टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और भारत में निर्माण का प्रस्ताव भी रखा है। यह पहल भारतीय रक्षा उत्पादन को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से बिल्कुल फिट बैठती है। प्रस्ताव के मुताबिक, Combat Vehicles Research and Development Establishment (CVRDE) भारत में इस परियोजना का केंद्र होगा। भारतीय सेना की विशेष जरूरतों के अनुसार टैंक के डिजाइन में बदलाव भी किए जाएंगे।
स्थानीय इंजन से बढ़ेगी विश्वसनीयता
रूस की तरफ से यह भी सुझाव दिया गया है कि टी-14 के भारतीय संस्करण में रूसी इंजन की जगह ‘डेट्रान-1500’ एचपी का स्थानीय रूप से निर्मित इंजन लगाया जाएगा। यह इंजन फिलहाल परीक्षण के दौर में है और 2027 से इसका बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू करने की योजना है। इससे न केवल टैंक की विश्वसनीयता बढ़ेगी बल्कि भारत के ऊंचे इलाकों में इसके संचालन में भी सुधार होगा।
भारत-रूस रक्षा संबंधों का नया अध्याय
यह प्रस्ताव भारत-रूस के पुराने मजबूत रक्षा संबंधों को और मजबूती देगा। इससे पहले भी रूस ने T-90S टैंक की टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के माध्यम से भारत को आत्मनिर्भर बनाने में मदद की थी। आज T-90 भीष्म टैंक के 83% से अधिक पुर्जे भारत में ही बनते हैं। इसी तरह टी-14 आर्मटा का स्थानीयकरण भारत की सैन्य क्षमता को नए स्तर पर पहुंचा सकता है।
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