बराक-8 से हेरॉन तक: भारत-इजरायल की दोस्ती से उभर रही नई शक्ति

नई दिल्ली। पिछले एक दशक में भारत ने अपनी रक्षा और औद्योगिक रणनीतियों में महत्वपूर्ण परिवर्तन किए हैं। 'आत्मनिर्भर भारत' और 'मेक इन इंडिया' जैसी पहलों ने केवल आर्थिक और औद्योगिक क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि सुरक्षा नीतियों में भी गहरी छाप छोड़ी है। इस परिवर्तन में इजरायल, भारत का एक मजबूत और तकनीकी रूप से सक्षम साझेदार बनकर उभरा है। भारत-इजरायल रक्षा सहयोग अब सिर्फ आयात-निर्यात का मामला नहीं रहा, बल्कि यह दो तकनीकी राष्ट्रों के बीच रणनीतिक साझेदारी का प्रतीक बन चुका है।

रणनीतिक परिवर्तन: आयात से आत्मनिर्भरता की ओर

भारत लंबे समय तक दुनिया के सबसे बड़े रक्षा आयातकों में शामिल रहा है। लेकिन बीते वर्षों में भारत ने रक्षा उत्पादों के आयात पर निर्भरता कम करते हुए, घरेलू स्तर पर अनुसंधान और उत्पादन को प्राथमिकता देना शुरू किया। इस बदलाव में इजरायल की भूमिका अहम रही है। भारत ने न केवल इजरायली रक्षा तकनीक को अपनाया, बल्कि उसे अपने यहां निर्मित करने के लिए टेक्नोलॉजी ट्रांसफर पर भी जोर दिया।

बराक-8: तकनीकी सहयोग का प्रतीक

बराक-8 मिसाइल प्रणाली, भारत और इजरायल की संयुक्त रक्षा परियोजनाओं का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। यह प्रणाली इजरायल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज (IAI) और भारत के DRDO के बीच साझा तकनीकी विकास का परिणाम है। यह मिसाइल प्रणाली समुद्री और थल-आधारित प्लेटफॉर्मों से दुश्मन की हवाई हमलों से रक्षा करने में सक्षम है। यह सहयोग केवल एक मिसाइल तक सीमित नहीं है, बल्कि यह तकनीक साझा करने और भारत में निर्माण को प्रोत्साहन देने की व्यापक नीति का हिस्सा है।

हेरॉन, सर्चर और UAVs: सामरिक शक्ति

भारत ने इजरायल से कई मानव रहित हवाई वाहन (UAV) जैसे हेरॉन और सर्चर मॉडल अपनाए हैं। लेकिन खास बात यह है कि इन प्रणालियों को अब भारत में ही असेंबल और आंशिक रूप से निर्मित किया जा रहा है। हैदराबाद स्थित अडानी-एल्बिट की UAV निर्माण इकाई इसका उदाहरण है, जो निजी क्षेत्र में भारत-इजरायल सहयोग का मजबूत संकेत देती है। इससे भारत की निगरानी क्षमता और सीमाओं की सुरक्षा दोनों ही मजबूत हुई है।

स्पाइस बम और हल्की मशीनगन

सटीक-निशाना लगाने वाले स्पाइस गोला-बारूद और इजरायल वेपन इंडस्ट्रीज (IWI) द्वारा आपूर्ति की गई हल्की मशीनगन जैसे उपकरण भारत की आधुनिक युद्ध प्रणाली का हिस्सा बन चुके हैं। 2020 में हुए समझौतों के तहत इन हथियारों की खरीद न केवल भारत की सामरिक क्षमताओं को बढ़ाती है, बल्कि इससे इजरायली हथियारों की भारत में बढ़ती स्वीकार्यता भी स्पष्ट होती है।

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