6वीं पीढ़ी के जेट इंजन "विकसित कर रहे" ये देश!

न्यूज डेस्क। विश्व की कई देश अगली पीढ़ी के लड़ाकू विमानों के लिए अत्याधुनिक 6वीं पीढ़ी के जेट इंजन विकसित करने में जुटी हैं। ये इंजन भविष्य की हवाई युद्धक रणनीतियों में क्रांति लाने की क्षमता रखते हैं। आइए जानते हैं कौन से देश इस दौड़ में कहां खड़े हैं। 

एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका और ब्रिटेन 6वीं पीढ़ी के जेट इंजन विकसित करने की दौड़ में सबसे आगे हैं, जहां एडाप्टिव साइकल तकनीक और AI इंटीग्रेशन को प्रमुखता दी जा रही है। वहीं चीन और रूस भी इस प्रतिस्पर्धा में बने रहने का प्रयास कर रहे हैं, हालांकि कुछ तकनीकी व आर्थिक सीमाएं उन्हें पीछे रख सकती हैं।

6वीं पीढ़ी के जेट इंजन "विकसित कर रहे" ये देश!

अमेरिका

GE XA100 और Pratt & Whitney XA101 जैसे अत्याधुनिक इंजन अमेरिका द्वारा ‘NGAD (Next Generation Air Dominance)’ प्रोग्राम के तहत विकसित किए जा रहे हैं, जो फिलहाल एडवांस टेस्टिंग फेज में हैं और दुनिया की सबसे उन्नत एडाप्टिव साइकल टेक्नोलॉजी से लैस हैं।

ब्रिटेन

ब्रिटेन की प्रतिष्ठित कंपनी Rolls-Royce, Tempest फाइटर जेट प्रोजेक्ट के लिए अगली पीढ़ी का इंजन तैयार कर रही है, जिसकी तकनीक में AI एकीकरण, स्मार्ट थ्रस्ट कंट्रोल और उन्नत स्टील्थ क्षमताएं शामिल होंगी; इसे 2035 तक ऑपरेशनल करने का लक्ष्य है।

जापान

जापान द्वारा विकसित किया जा रहा IHI XF9-1 इंजन सफलतापूर्वक ग्राउंड टेस्टिंग पार कर चुका है, और अब यह ब्रिटेन और इटली के साथ मिलकर GCAP (Global Combat Air Programme) का हिस्सा बन चुका है, जो अगली पीढ़ी के मल्टी-नेशनल फाइटर के लिए तैयार किया जा रहा है।

चीन

चीन अपनी अगली पीढ़ी की फाइटर जेट क्षमताओं के लिए WS-15 के बाद अब और उन्नत इंजन विकसित कर रहा है, हालांकि तकनीकी जानकारी सीमित है; यह इंजन टेस्टिंग स्टेज में है और मुख्यतः स्टेल्थ, थ्रस्ट और उच्च गति पर केंद्रित है।

रूस

रूस का ध्यान ‘PAK DP (6th-gen Interceptor)’ जैसे भविष्य के लड़ाकू विमानों के लिए "Product 30" या उससे भी उन्नत इंजन तैयार करने पर है, लेकिन यह परियोजना अभी प्रारंभिक विकास चरण में है और इसे तकनीकी व आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।

फ्रांस, जर्मनी, स्पेन

यूरोपीय गठबंधन के तहत Safran (फ्रांस) और MTU (जर्मनी) मिलकर FCAS (Future Combat Air System) प्रोजेक्ट के लिए 6वीं पीढ़ी का इंजन विकसित कर रहे हैं; इसका डिज़ाइन कार्य जारी है और इसे 2040 तक पूरी तरह से तैनात करने का लक्ष्य रखा गया है।

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