रक्षा उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि
2019-20 में जहां भारत का रक्षा उत्पादन 79,071 करोड़ रुपये था, वहीं 2024-25 तक यह आंकड़ा 90% की वृद्धि के साथ 1.5 लाख करोड़ रुपये के पार पहुंच गया है। यह केवल एक आर्थिक उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह ‘आत्मनिर्भर भारत’ के उस विज़न की ठोस झलक है, जिसे केंद्र सरकार विशेष रूप से बढ़ावा दे रही है। इस वृद्धि का श्रेय सरकारी संस्थानों के साथ-साथ निजी उद्योगों के योगदान को भी जाता है, जिन्होंने नई तकनीक, नवाचार और निवेश के ज़रिये इस क्षेत्र को नई दिशा दी है।
वैश्विक बाजार में भारत की बढ़ती पकड़
रक्षा निर्यात के आंकड़े भी बेहद उत्साहजनक हैं। वित्तीय वर्ष 2024-25 में भारत ने 23,622 करोड़ रुपये मूल्य के रक्षा उपकरणों का निर्यात किया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 12% अधिक है। इसका मतलब साफ है: भारत अब सिर्फ अपनी ज़रूरतें पूरी नहीं कर रहा, बल्कि वैश्विक सुरक्षा आपूर्ति श्रृंखला का एक भरोसेमंद भागीदार बनता जा रहा है।
ड्रोन, रडार सिस्टम, गोला-बारूद, बख्तरबंद वाहन और मिसाइल जैसे अत्याधुनिक रक्षा उपकरण अब भारत में बनाए जा रहे हैं और दुनियाभर के देशों तक पहुंच रहे हैं। इस विस्तार के पीछे सरकार द्वारा लाई गई नीतिगत सुधार, रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति, और ‘मेक इन इंडिया’ जैसे अभियानों का बड़ा योगदान है।
रणनीतिक दृष्टिकोण और नेतृत्व
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस उपलब्धि को साझा करते हुए न केवल आंकड़ों की बात की, बल्कि इसके पीछे के 'सामूहिक प्रयासों' को भी सराहा। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि यह उन्नति किसी एक संस्था की नहीं, बल्कि रक्षा मंत्रालय, DPSUs, निजी कंपनियों और अन्य हितधारकों के संयुक्त प्रयासों का परिणाम है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जिस तरह से रक्षा क्षेत्र में दूरदर्शी नीतियां अपनाई गई हैं, उससे भारत का रक्षा औद्योगिक आधार मज़बूत हुआ है। तकनीकी आत्मनिर्भरता, अनुसंधान एवं विकास (R&D) में निवेश और स्थानीय उत्पादन को प्राथमिकता ने देश को एक नई ऊंचाई पर पहुंचाया है।
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