अमेरिकी टैरिफ और भारत की चुनौतियाँ
अमेरिका द्वारा भारतीय निर्यात पर लगाए गए कड़े टैरिफ ने भारत की निर्यात अर्थव्यवस्था को जकड़ लिया है। खासकर रत्न और आभूषण, वस्त्र, चमड़ा जैसे पारंपरिक उद्योग जो भारत के निर्यात के मुख्य स्तंभ रहे हैं, वे अब अप्रत्याशित चुनौती का सामना कर रहे हैं। अमेरिकी बाजार में निर्यात पर टैरिफ के बढ़ने से इन उद्योगों की प्रतिस्पर्धात्मकता प्रभावित हुई है, जिससे भारत के निर्यातकों को बड़ा आर्थिक नुकसान झेलना पड़ सकता है।
वैकल्पिक बाजारों की तलाश ज़रूरी
नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष राजीव कुमार का मानना है कि इस स्थिति में भारत को केवल अमेरिका पर निर्भर रहने के बजाय नए अंतरराष्ट्रीय बाजारों की खोज करनी होगी। वैश्विक व्यापार के बदलते स्वरूप में बाजार विविधता ही सुरक्षा कवच साबित हो सकती है। भारत को अपने घरेलू उद्योगों को मजबूत कर, उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाकर विश्व के विभिन्न हिस्सों में अवसर तलाशने होंगे। इससे न केवल अमेरिकी टैरिफ के प्रभाव को कम किया जा सकेगा, बल्कि निर्यात की दिशा में नए आयाम भी खुलेंगे।
घरेलू उद्योगों को सशक्त बनाना आवश्यक
विशेषज्ञ इस बात पर सहमत हैं कि भारत को घरेलू स्तर पर अपने उत्पादन और निर्यात क्षमता को बढ़ावा देना होगा। इसके लिए सरकारी नीतियों और निवेश को उद्योगों के अनुकूल बनाना होगा, ताकि वे वैश्विक प्रतिस्पर्धा में टिक सकें। रत्न-आभूषण, वस्त्र, चमड़ा जैसे परंपरागत क्षेत्रों के साथ-साथ डेयरी उत्पादों जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में भी व्यवहारिक और संतुलित समाधान खोजने होंगे, जिससे व्यापारिक संबंध खराब न हों और देश के हित सुरक्षित रहें।
व्यापार नीति में सक्रिय रणनीति अपनाने की जरूरत
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के संस्थापक अजय कुमार के अनुसार, फिलहाल अमेरिका द्वारा नए टैरिफ की संभावना कम है, परंतु इससे complacency नहीं होनी चाहिए। भारत को चाहिए कि वह व्यापार नीति में एक सक्रिय, दूरदर्शी रणनीति अपनाए, जिसमें वैकल्पिक बाजारों की खोज, घरेलू उत्पादन बढ़ावा, और निर्यात उन्मुख क्षेत्रों को मजबूत करना शामिल हो। केवल इस प्रकार ही भारत अमेरिकी टैरिफ के झटकों से बच पाएगा और नई आर्थिक संभावनाएं भी तलाश सकेगा।
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