130% तक बढ़ सकता है उत्सर्जन: IEA
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) की एक रिपोर्ट के अनुसार, अगर मौजूदा नीतियों और रफ्तार में कोई बदलाव नहीं किया गया, तो 2050 तक ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन 130% तक बढ़ सकता है। यह आंकड़ा न केवल भयावह है, बल्कि इस ओर भी इशारा करता है कि दुनिया अब निर्णायक मोड़ पर खड़ी है।
टॉप 5 तापमान उत्सर्जक देश
रिपोर्ट के मुताबिक, धरती की गर्मी बढ़ाने में सबसे आगे है चीन, जो अकेले ही वैश्विक उत्सर्जन का 30% जिम्मेदार है। उसके बाद अमेरिका (15%), भारत (7%), रूस (5%) और जापान (4%) आते हैं। ये आंकड़े साफ दिखाते हैं कि वैश्विक तापमान बढ़ाने में कुछ मुट्ठीभर देश बड़ी भूमिका निभा रहे हैं।
जलवायु परिवर्तन का असर
बता दें की इस बेतहाशा बढ़ते उत्सर्जन का असर हर जगह दिखने लगा है। बर्फ की चट्टानों का पिघलना, समुद्रों का स्तर बढ़ना, गर्मियों की अवधि लंबी होना, और अप्रत्याशित मौसम घटनाएं जैसे बाढ़, सूखा और हीटवेव्स अब आम हो चुकी हैं।
ग्रीन हाइड्रोजन की ओर उम्मीद
हालांकि संकट गंभीर है, लेकिन समाधान की दिशा में भी कुछ सकारात्मक कदम उठाए जा रहे हैं। दुनिया अब ग्रीन हाइड्रोजन, नवीकरणीय ऊर्जा, और सस्टेनेबल टेक्नोलॉजी की ओर तेजी से बढ़ रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि बड़े देश अपनी ऊर्जा नीतियों में बदलाव करें और अक्षय ऊर्जा स्रोतों को प्राथमिकता दें, तो स्थिति में सुधार संभव है।
साझा जिम्मेदारी की ज़रूरत
अब समय आ गया है कि वैश्विक स्तर पर इन उत्सर्जकों को जवाबदेह बनाया जाए। पर्यावरणविदों का कहना है कि जलवायु संकट का समाधान केवल तकनीकी नहीं, बल्कि राजनीतिक इच्छाशक्ति और सामूहिक जिम्मेदारी से ही संभव है।
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