बिहार में 'मुखिया' और 'सरपंच' को लेकर बड़ी खबर

पटना। बिहार सरकार ने भूमि संबंधी पुरानी और जटिल समस्याओं के समाधान की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। राजस्व महा-अभियान के तहत उत्तराधिकार और बंटवारे पर आधारित नाम परिवर्तन की प्रक्रिया को सरल और सुगम बनाने का फैसला किया है। इस अभियान का उद्देश्य वर्षों से लंबित मामलों का निपटारा करना और आम लोगों को राहत देना है।

पारंपरिक प्रक्रिया में अड़चन

बिहार में नामांतरण या बंटवारे के मामलों में मृतक रैयत के मृत्यु प्रमाण पत्र की अनिवार्यता बड़ी बाधा रही है। बिहार के कई ग्रामीण इलाकों में ऐसे असंख्य मामले हैं जहां जिस व्यक्ति के नाम से भूमि दर्ज है, उसकी मृत्यु कई साल पहले हो चुकी है, लेकिन परिजनों के पास उसका डेथ सर्टिफिकेट उपलब्ध नहीं है।

पंचायत प्रतिनिधियों को जिम्मेदारी

अब विभाग ने इस समस्या का समाधान निकालते हुए डेथ सर्टिफिकेट की जगह स्व-घोषणा पत्र को मान्यता देने का निर्णय लिया है। इस प्रक्रिया के तहत मृत व्यक्ति के उत्तराधिकारी एक सामान्य कागज पर घोषणा पत्र देंगे, जिस पर पंचायत के मुखिया या सरपंच के हस्ताक्षर होने आवश्यक होंगे। यह दस्तावेज मृत्यु प्रमाण पत्र के रूप में मान्य होगा और उसी आधार पर नाम परिवर्तन या बंटवारे की प्रक्रिया आगे बढ़ाई जा सकेगी।

इसके अतिरिक्त, अगर किसी राजस्व रिकॉर्ड की वंशावली (genealogy) में किसी सदस्य के नाम के साथ ‘मृत’ दर्ज है, तो वह भी प्रमाण स्वरूप स्वीकार किया जाएगा। इसका अर्थ यह है कि अब पुराने रिकॉर्ड खुद साक्ष्य के तौर पर मान्य होंगे।

ग्राम पंचायतों की भूमिका होगी अहम

इस फैसले के साथ ही पंचायत प्रतिनिधियों मुखिया और सरपंच की भूमिका अब और अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। उन्हें प्रमाणन प्रक्रिया का हिस्सा बनाया गया है, जिससे निर्णय प्रक्रिया में जमीनी स्तर की भागीदारी बढ़ेगी। इससे एक ओर जहां लोगों को अपने क्षेत्र में ही प्रमाणन सुविधा उपलब्ध होगी, वहीं प्रशासनिक बोझ भी कम होगा।

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