भारत-रूस की बड़ी डील, चीन-पाकिस्तान के उड़े होश!

नई दिल्ली। भारत और रूस के सैन्य संबंधों में एक बड़ा कदम उठाते हुए रूसी संसद ड्यूमा ने हाल ही में RELOS (Reciprocal Exchange of Logistic Support) समझौते को मंजूरी दे दी है। इस रणनीतिक समझौते के बाद दोनों देशों की सेनाएँ आवश्यकता पड़ने पर एक-दूसरे के सैन्य अड्डों, बंदरगाहों, एयरबेस और लॉजिस्टिक सुविधाओं का उपयोग कर सकेंगी। यह कदम न केवल भारत–रूस रक्षा साझेदारी को नई ऊँचाइयाँ देता है, बल्कि चीन के लिए भी बड़ी कूटनीतिक चुनौती के रूप में देखा जा रहा है।

मध्य एशियाई सैन्य ठिकानों तक भारत की पहुंच

RELOS का सबसे प्रभावी पहलू यह है कि भारत को अब रूस के उन मध्य एशियाई सैन्य ठिकानों तक पहुँच मिल सकती है, जो भौगोलिक रूप से चीन के संवेदनशील इलाकों के बेहद करीब हैं। रूस के तजाकिस्तान, किर्गिस्तान और कजाकिस्तान में कई प्रमुख सैन्य ठिकाने मौजूद हैं। 

ये ठिकाने चीन के महत्वपूर्ण औद्योगिक और सैन्य क्षेत्रों अक्सु, कासगर और यिनिंग से निकटता रखते हैं। यही क्षेत्र चीन के तेल उत्पादन, मिसाइल परीक्षण और हथियार निर्माण का प्रमुख केंद्र हैं। ऐसे में भारत की बढ़ती उपस्थिति चीन की सामरिक रणनीति के लिए असहज स्थिति बना सकती है।

चीन की घेराबंदी रणनीति का जवाब

पिछले एक दशक में चीन ने दक्षिण एशिया में अपनी मौजूदगी बढ़ाते हुए पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल और म्यांमार में आधार मजबूत किए। विशेषज्ञों का मानना है कि RELOS समझौता भारत को पहली बार चीन की पश्चिमी दिशा से रणनीतिक पहुंच दिलाता है, जिससे चीन का "घेरा बनाने" वाला प्रयास संतुलित होता है। मध्य एशिया में भारत की बढ़ती सक्रियता चीन को यह एहसास कराती है कि अब भारत सिर्फ पूर्वी और पश्चिमी सीमाओं से नहीं, बल्कि उसके पीछे के गलियारे से भी स्थिति पर नजर रख सकता है।

CPEC पर भी भारत की रहेगी निगाह

चीन–पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) चीन के कासगर शहर से शुरू होकर पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह तक जाता है। RELOS से मिलने वाली पहुंच भारत को कासगर क्षेत्र पर रणनीतिक नजर बनाए रखने का अवसर देती है। अब भारत, चीन की तीन तरफा गतिविधियों पूर्वी सीमा, पश्चिमी सीमा और मध्य एशिया पर एक साथ निगरानी रख सकता है। यह चीन–पाकिस्तान की संयुक्त रणनीतियों के लिए भी नई चुनौती साबित होगी।

0 comments:

Post a Comment